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३७. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

मोनदिवस, ज्येष्ठ बदी [७, २१ जून, १९२७][१]

बहनों,

तुम्हारा पत्र मिला ।

सूतकी चूड़ियोंकी मैंने तारीफ की, उसका यह अर्थ नहीं कि सब पहनने लगो । ऐसे परिवर्तन भीतरसे हों, तभी टिकते हैं और जबतक अन्तर तैयार न हो, तबतक मैं चाहता हूँ कि शर्मके मारे कोई कुछ न करे ।

आजकल मैं रोज दुग्धालय देखने जाता हूँ । उसे देखकर कई तरह के विचार आया करते हैं । परन्तु उनमें से एक तो तुमको दे दूं । जैसे तुमने भण्डारका काम लिया है, वैसे ही दुग्धालयका काम भी ले सकती हो। केवल हमारे अज्ञान और आलसके कारण रोज हजारों ढोरोंका नाश होता रहता है । में यह देख रहा हूँ कि यह काम भी ऐसा है कि जितनी आसानीसे इसे पुरुष कर सकते हैं, उतनी ही आसानीसे स्त्रियाँ भी कर सकती हैं। काठियावाड़की ग्वालिनें और उनके हाथी जैसे बलवान शरीर भी मेरी नजरके सामने आ खड़े होते हैं। हम किसान, जुलाहे और भंगी तो हैं ही, ग्वाले बने बगैर भी काम न चलेगा ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६५४) की फोटो - नकलसे ।

पत्र : जयकृष्ण प्रभुदास भणसालीको

बंगलोर

ज्येष्ठ बदी ७ [ २१ जून, १९२७][२]

भाईश्री भणसाली,

तुम्हारा पत्र मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि उसमें तुमने अपना हृदय खोला है । मणिबहनने आज खबर दी कि तुम्हारा सात दिवसीय उपवास अच्छी तरह चल रहा है । सात दिनका उपवास तो तुम्हारे लिए खेल है इसलिए मैंने उसके सम्बन्ध- में कोई चिन्ता की ही नहीं थी। लेकिन उपवासके कारणोंके सम्बन्धमें तुमने जो दलील दी है उसमें मुझे दोष दिखाई देता है । पहली बात तो यह है कि यदि किसी कामको

  1. साधन-सूत्रमें ज्येष्ठ वदी ६ तिथि दी हुई है किन्तु उस वर्ष यह क्षय तिथि थी। साधन-सूत्रमें २३-६-१९२७ तारीख भी दी हुई है किन्तु पत्रमें ही दी हुई हिन्दू तिथि ज्येष्ठ बदी ६ से इसका कोई मेल नहीं बैठता। सम्भवतः यह पत्रकी प्राप्ति की तारीख है ।
  2. भणसालीके सात दिवसीय उपवासके उल्लेखसे ।