पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

४२. पत्र : गो० कृ० देवधरको

कुमार पार्क,बंगलोर

२२ जून,१९२७

प्रिय देवधर,

पत्रके लिए धन्यवाद। आपके चुनावकी खबर तो मैंने अखबारोंमें पढ़ ही ली थी। आपका चुना जाना तय ही था । इसलिए मैंने आपको बधाई नहीं भेजी । और यद्यपि दूसरोंकी दृष्टिमें यह आपको दिया गया एक सम्मान है, किन्तु मैं तो आपकी ही तरह भलीभाँति जानता हूँ कि आपके लिए इसका मतलब और अधिक जिम्मेदारी और बड़ा सेवाका अवसर है । आपने मुझे इस संस्थाका मित्र और सहायक कहा है। मगर मैं तो अपने को इससे भी बहुत ज्यादा मानता हूँ। मैंने तो अपने-आपको बराबर इस संस्थाका सदस्य ही माना है यद्यपि औपचारिक रूपसे में इसका सदस्य नहीं हूँ और न इसके कार्यकलाप में कोई सक्रिय हिस्सा ही लेता हूँ । किन्तु इस कारण मुझे अपने-आपको इसका सदस्य मानने में तनिक भी परेशानी नहीं होती। मैं इससे अलग रहकर ही इसकी सेवा कर सकता हूँ । जब किसी बड़े परिवारका कोई सदस्य हृदयसे परिवारके साथ होते हुए भी उसके व्यवहारसे सहमत नहीं हो पाता तो वह सक्रिय सेवा कर सकनेकी दृष्टिसे बराबर यही कामना करता है कि ईश्वर उसके मनको भी वहीं लगाये जहाँ उसका हृदय बसता है; और फिर उसका उक्त परि- वारके काममें कोई हस्तक्षेप न करना ही उसकी सेवा करना हो जाता है। कहा है न कि जो धैर्यके साथ प्रतीक्षा और प्रार्थना करता है, वह भी सेवा ही करता है ? इसलिए मेरी इन मर्यादाओंको देखते हुए जब कभी आपको लगे कि मैं कोई उप- योगी सेवा कर सकता हूँ, तब आपको मुझसे सेवा लेनेका अधिकार है ।

मेरी समझमें अगस्तके अन्तिम दिनोंसे पहले मैं साबरमती नहीं पहुँच सकूंगा । कारण, यहाँके डाक्टरोंका कहना है कि अगले महीनेसे में थोड़ी-बहुत यात्रा करने लायक हो जाऊँगा, और अगर ऐसा हुआ तो मैं दक्षिण भारतकी यात्राका कार्यक्रम जहाँतक बन पड़े पूरा कर लेना चाहूँगा । इसे राजगोपालाचारी और गंगाधरराव देशपांडेने तैयार किया है और इसको लेकर उन्हें काफी परेशानी भी रही । अगर मैं यह मान लूँ कि आपका स्थायी निवास पूना ही है तो आपके लिए बंगलोर आ सकना साबरमती जानेसे ज्यादा आसान नहीं तो उतना आसान तो है ही । में लगभग १० जुलाईतक तो यहीं हूँ । इसलिए अगर आप यहाँ आनेकी स्थितिमें हों और आना चाहें तो आ सकते हैं । श्रीमती देववरसे तो मुझे बराबर शिकायत रहेगी ही, क्योंकि उन्होंने मुझसे