पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

४५. टिप्पणियाँ

आगामी दौरा

आजकल डॉ० सुब्बाराव और डॉ० कृष्णस्वामी कृपापूर्वक मेरी देख-भाल कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर इस महीने के अन्ततक मेरा स्वास्थ्य, जैसी कि उम्मीद है, उसी रफ्तारसे सुधरता रहा तो इस बातका खयाल रखते हुए कि अधिक श्रम न पड़े मैं थोड़ा-बहुत दौरा फिरसे आरम्भ कर सकूंगा । इस सम्भावनाको देखते हुए मैं कार्य- कर्त्ताओं तथा अन्य सम्बन्धित लोगोंसे इस बातका ध्यान रखनेका अनुरोध करूँगा कि अभी मैं उतना दबाव बरदाश्त नहीं कर सकूंगा जितना कि मुझे मार्च महीने के अन्त तक बरदाश्त कर सकने लायक समझा जाता था । अतएव मेरे कहीं जानेपर जो जुलूस निकलते हैं और जैसा शोर-गुल होता है, वह सब बन्द रखना चाहिए और लोगोंको बार-बार आगाह कर देना चाहिए कि वे मेरे आस-पास भीड़ लगाकर खड़े न हों और जयजयकार करने तथा मेरे पैर छूने आदिसे बाज आयें। इसी तरह मुझे जहाँ-जहाँ ले जाया जाये, वहाँ-वहाँ मुझसे संस्थाओंको देखनेके लिए जानेकी अपेक्षा न की जाये। एक सभा और कार्यकर्त्ताओंसे अनौपचारिक बातचीत - एक दिनमें मुझसे लगभग इतना ही हो सकेगा । क्या-क्या नहीं करना चाहिए, यह समझानेके लिए मैं चिकबल्लापुरका उदाहरण दूंगा; यद्यपि मैं जानता हूँ कि ऐसा करना अनुदारता की निशानी होगी । चिकबल्लापुरके लोग व्यक्तिशः मेरे प्रति बड़े उदार और कृपालु रहे हैं। जब में नन्दीमें था तब चिकबल्लापुरके खास-खास लोग समय-समयपर आकर यह देख जाया करते थे कि मेरी सारी जरूरतें पूरी हो रही हैं अथवा नहीं और सारी व्यवस्था ठीक तो है । वे सचमुच मेरा बड़ा खयाल रखते थे । इसी तरह स्वयंसेवकगण भी, जो सबके सब मैसूरके प्रमुख परिवारोंके लोग थे, बड़े आदर और स्नेह से मेरी देख-भाल करते थे । यह सब देखकर एक भाईने मुझसे कहा था कि मैसूरके लोग तो निःस्वार्थ प्रेमका अद्भुत उदाहरण पेश कर रहे हैं, जब कि आपने खास तौरसे इन लोगोंके लिए तो कुछ नहीं किया है और यदा-कदा जल्दीमें बंगलोर हो आनेके अलावा आपने इस प्रदेशको देखा तक नहीं है; इन भाईके मुंहसे सहज ही निकल पड़ी इस बातसे में सहमति प्रकट किये बिना नहीं रह सका । चिकबल्लापुरकी स्वागत समितिने मेरे कुछ कहे बिना ही मेरी जरूरतोंका अनुमान लगाकर उन्हें पूरा करने में कुछ भी उठा नहीं रखा था । इसमें उसने बहुत समय और पैसा खर्च किया था । इसलिए अगर में अप्रिय बातके किसी उदाहरणके रूपमें चिकबल्लापुरका नाम लेनेसे बच सकता तो मुझे बड़ी खुशी होती ।

लेकिन, वहाँ जो कुछ हुआ वह उस तरह की बातोंका एक ऐसा सटीक उदाह- रण है कि उसका उल्लेख करना आवश्यक है। ऐसा तय हुआ था कि कोई जलूस नहीं निकाला जायेगा और सभा-स्थलतक मुझे शान्तिपूर्वक और गाड़ीको तेजी से चलाकर