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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ले जाया जायेगा । सभामें[१] भी किसी तरहका शोर-गुल नहीं होगा। लेकिन मेरी गाड़ीको देखते ही नेता और जनता सब आपा खो बैठे, और यद्यपि बहुत तेज धूप तप रही थी, फिर भी गाड़ीका हुड उठा दिया गया और गाड़ी वहाँसे सभा स्थलतक जुलूसके साथ-साथ चींटीकी चालसे ले जाई गई । श्री हमजा हुसेन साहब स्वागत समिति अध्यक्ष थे और उस समय मुझे साथ लिवाये जा रहे थे; व्यथित मनसे वे यह सब देखते रह गये; उनसे भी कुछ करते नहीं बना । यद्यपि वे कार्यकारी दीवान हैं और पहले पुलिस कमिश्नर रह चुके हैं, फिर भी वे जानते थे कि इस समय तो उनका वास्ता भारतके दीन-दुःखी लोगोंके प्रतिनिधिसे पड़ा है और इसलिए उन्हें नन्दीके लोगोंका वह सारा व्यवहार, जिसके कारण वे अपना दायित्व नहीं निभा सके, चुपचाप बरदाश्त कर लेना पड़ा। मैंने नेताओंसे, जिनसे मैं नन्दी में मिल चुका था और जो उस समय गाड़ीके पास थे, अनुरोध किया कि वे इस उत्साहकी बाढ़को रोकें और गाड़ीको जल्दी सभा स्थलतक ले चलें । उसका जो उत्तर मिला वह यही कि हाँ-हाँ, हम जल्दी ही वहाँ पहुँच रहे हैं । सभामें भी कोई खास व्यवस्था नहीं थी । तिसपर श्रोताओं में से अधिकांश लोगोंके अंग्रेजीदां न होते हुए भी, मानपत्र अंग्रेजी में ही पढ़कर सुनाया गया । इन पृष्ठों में मैंने बार-बार यह कहा है कि जिन सभाओं में बेचारे गरीब लोग हजारोंकी तादाद में इकट्ठे होते हैं, कमसे कम ऐसी सभाओंकी कार्यवाही अगर उनकी मातृभाषा में चलाई जाये और आवश्यकता पड़ने पर मुझे उसका हिन्दी अनुवाद दे दिया जाये तो यह परिवेशके ज्यादा अनुकूल होगा। लेकिन उस सभामें मेरे इस अनुरोधकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। फिर भी चिकबल्लापुरके लिए इतना तो अवश्य कहा जाना चाहिए कि उसकी गलतियोंका कारण भी प्रेम ही था। मुझे बताया गया कि उनके यहाँ ऐसी कोई सार्वजनिक सभा पहले कभी नहीं हुई थी । स्वभावतः वे लोगों के उत्साहपर पानी नहीं फेरना चाहते थे । उत्साहकी लहरमें पड़कर कुछ समयके लिए वे भी अपना आपा खो बैठे और जहाँतक हिन्दी अनुवादकी बात है, चिकबल्लापुर में शायद हिन्दी जानने वाला कोई आदमी था ही नहीं। लेकिन अब दूसरे स्थानोंकी स्वागत समितियाँ चिकबल्लापुर की अनिवार्य गलतियोंसे लाभ उठायें। वे अपने उत्साहको संयत रखने के लिए पहले से ही अभ्यास करें। इस उत्साहको वे खादीकी खरीदारी और डटकर चरखा चलाने में लगायें। यह उत्साहजनित शक्तिका लाभदायक, राष्ट्रीय और समझदारी भरा उपयोग होगा, और इससे उनके अतिथिको न केवल प्रसन्नता होगी, बल्कि उसके शरीर, मन और आत्मा सभीको शक्ति मिलेगी ।

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पीठके बल लेटे-लेटे और कभी कभी डाक्टरोंकी सलाहके अनुसार अपने दिमाग- को गम्भीर विषयोंके अध्ययनसे अलग रखने की कोशिश करते हुए मेरी नजर अखबारों में छपे विज्ञापनोंपर चली जाती है। कभी-कभी उनसे बहुत-सी बातोंका पता लग जाता है; किन्तु वे होती हैं क्लेशकर । प्रतिष्ठित अखबारों में भी में अकसर बहुत

  1. देखिए खण्ड ३३, “भाषण : चिकबल्लापुर में ", ५-६-१९२७ ।