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तार : रामेश्वरदास पोद्दारको

ही अश्लील ढंगके विज्ञापन देखता हूँ । उनके शीर्षक बहुत भ्रामक होते हैं। विज्ञापनका शीर्षक था 'योगसे सम्बन्धित पुस्तकें' । जब उस विज्ञापनका मजमून देखा तो पता चला कि दसमें से शायद एकाध पुस्तक ही योगसे किसी तरह सम्बद्ध थी; शेषका सम्बन्ध कामसे ही था और उनमें युवकों और युवतियोंको गुप्त उपाय बतानेका वादा करते हुए यह कहा गया था कि वे पश्चात्तापका अवसर आने के भयसे मुक्त रहकर यौन आनन्दका उपभोग कर सकते हैं। इससे भी बुरी बातें इन विज्ञापनों में देखनेको मिलीं, जिन्हें में यहाँ नहीं देना चाहता । शायद ही कोई ऐसा अखबार हो जिसमें शराब और ऐसी औषधोंका विज्ञापन न छपता हो जिनका उद्देश्य युवा मनको दूषित करना है । ऐसे सम्पादक और अखबार मालिकोंको भी, जो खुद बहुत शुद्ध चरित्रवाले और शराबखोरी, धूम्रपान तथा इसी तरहकी अन्य बुराइयोंके विरोधी हैं, ऐसे विज्ञापनोंसे पैसा कमाते हुए कोई क्लेश नहीं होता जिनका उद्देश्य स्पष्ट ही ऐसी बुराइयोंका प्रचार करना होता है जिनसे वे स्वयं दूर भागते हैं । अकसर इसके उत्तर में यह दलील दी जाती है कि और किसी तरह अखबार चलाया ही नहीं जा सकता। लेकिन क्या किसी भी कीमतपर अखबार चलाना जरूरी है ? क्या उनसे इतना लाभ होता है कि गन्दे विज्ञापनोंसे उत्पन्न होनेवाली बुराई उसके सामने ध्यान देने योग्य नहीं है ? हमारा एक पत्रकार संघ है। क्या यह सम्भव नहीं है कि उस संघके जरिये पत्रकारितासे सम्बद्ध सभी लोगोंसे एक ही तरहके नैतिक नियमों का पालन कराया जाये और ऐसा लोकमत तैयार किया जाये जो किसी भी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाके लिए निर्धारित नैतिक नियमोंका उल्लंघन करना असम्भव बना दे ।

[ अंग्रेजी से ]

यंग इंडिया, २३-६-१९२७

४६. तार : रामेश्वरदास पोद्दारको

बंगलोर

२३ जून,१९२७

रामेश्वरदास

धूलिया

एक ही स्थानपर तुम्हारे लिए उपवास - उपचारकी और तुम्हारी पत्नी के लिए डाक्टरी इलाजकी व्यवस्था करना कठिन । क्या तुम [ अपनी पत्नीसे ] अलग रह सकते हो ? क्या तुम्हारी पत्नी जरूरत होनेपर पुरुष डाक्टरसे ऑपरेशन करवा सकती हैं? डाक द्वारा पूरा जवाब भेजो।

बापू

अंग्रेजी (जी० एन० ७३९ ) की फोटो नकलसे ।