पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/९२

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४७. पत्र : हेलेन हॉसडिंगको

कुमार पार्क,बंगलोर

२३ जून,१९२७

मेरी प्यारी गौरैया[१],

तुम्हारा पोस्टकार्ड मिला। यह जानकर बड़ा दुःख हुआ कि कार्ड लिखते समय भी तुम बीमार ही थीं। लेकिन आशा है, इस पत्रके पहुँचते-पहुँचते तुम अच्छी हो चुकोगी, कमसे कम इतनी स्वस्थ तो हो ही जाओगी जितना स्वस्थ में हो गया लगता हूँ । तुम्हें एक हदसे अधिक बीमार नहीं रहना चाहिए। और वह हद तो पहले ही पार हो चुकी है।

तुम्हारी ज्ञान-वृद्धिके लिए तुम्हारी एक सहयात्रिणीके लिखे एक लेखका कृष्ण- दास द्वारा किया गया स्वतन्त्र अनुवाद भेज रहा हूँ । कह नहीं सकता कि उसने जिस बातचीतको तुम्हारे साथ हुई बातचीत बताया है, लेखमें उसका विवरण ठीक-ठीक दिया गया है या नहीं ।

बंगलोरकी आबोहवा तो बहुत सुखदाई है, में यहाँ लगभग २० दिन और रहनेकी उम्मीद करता हूँ । डाक्टरोंको आशा है कि तबतक में बिना किसी कठिनाई के जहाँ-तहाँ आने-जाने लायक हो जाऊँगा ।

हृदयसे तुम्हारा,

अंग्रेजी (एस० एन० १२५२४) की फोटो- नकलसे ।

४८. पत्र : जे० डब्ल्यू० पेटावेलको

कुमार पार्क,बंगलोर

२३ जून,१९२७

प्रिय भाई,

आशा है,मेरा पहला पत्र[२] आपको समय से मिल गया होगा।अपने अपनी पुस्तक मुझे बड़े मौकेसे भेजी। इन दिनों में बीमारीसे ठीक होनेके बाद स्वास्थ लाभके खयालसे आराम कर रहा हूँ, सो मेरे पास थोड़ा-बहुत पढ़ने और बोलकर कुछ पत्र और कुछ एक लेख लिखाने के अलावा कोई काम नहीं रहता। इसलिए मैंने आपके कार्यक्रम, नीति अथवा शिक्षाके, उसे जो भी कहा जा सकता हो, मुख्य तथ्यको जाननेके खयाल से आपकी पुस्तक उठाई। अभी-अभी उसे समाप्त करके मैं यह पत्र

  1. हेलेन हाँसडिंगके स्वभावको देखते हुए स्नेह और विनोदवश गांधीजी उन्हें 'स्पैरो' गौरैया कहा करते थे।
  2. १५ जून, १९२७ का पत्र देखिए खण्ड ३३ ।