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पत्र : जे० डब्ल्यू० पेटावेलको

बोलकर लिखवा रहा हूँ । मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि पुस्तक मुझे जँची नहीं । इस पुस्तकमें जो तत्त्वकी बात है, उसे तो मैंने बहुत पहले ही करना शुरू कर दिया था। यह बात १९०९-१० की है । एक मित्रने ट्रान्सवालके सत्याग्रहियोंके उपयोगके लिए मुझे १,१०० एकड़ जमीन दी थी। उसे मैंने और उन्होंने टॉल्स्टॉय फार्मका नाम दिया था । वहाँ हम ठीक वही काम कर रहे थे, जो आपने सुझाया है । वहाँ रहनेवाले लड़कों और उनके सगे-सम्बन्धियों, सबको काम करना पड़ता था; लड़कोंको थोड़ा-बहुत पढ़ाया भी जाता था, लेकिन उन्हें काम खूब करना पड़ता था, उन्हें खलने भी खूब दिया जाता था । अगर आज उनसे पूछा जाये तो उनमें से कुछ एक शायद यही कहेंगे कि उन्हें कामके बजाय सारे समय खेलने ही दिया जाता तो यह बात उन्हें ज्यादा पसन्द आती, और कुछ अधिक संकोची लोग शायद यह कहेंगे कि उन्हें खेलने के लिए और अधिक समय तथा कामके लिए और कम समय दिया जाता तो उन्हें अच्छा लगता। लेकिन मैं उस बस्तीमें वैसा कुछ विशेष करके नहीं दिखा पाया जैसा कि आप अपनी बस्ती में कर दिखाने का दावा करते हैं । मेरी तो यही कामना है कि आपका यह दावा सही साबित हो ।

जिनके पास समयका अभाव है, ऐसे व्यस्त लोगोंके लिए संघ द्वारा प्रकाशित अपीलका मैंने बहुत ध्यानपूर्वक अध्ययन किया। मुझे तो ऐसी आशंका है कि आपने रेखा-चित्र १ में भविष्यकी जो तस्वीर पेश की है, यह अभी बहुत समयतक तसवीर- भर रहेगी। हो सकता है, c.d. कालान्तर में समृद्ध और पुष्ट होकर C. D. का रूप ले ले। लेकिन तब वह A. B. में ही समा जायेगा, और वास्तवमें आज भी यह प्रक्रिया जारी है।

आपकी पुस्तक में "स्विट्ज़रलैंडसे एक सबक ", " बेल्जियम" और "अमेरिका शीर्षकसे तीन परिच्छेद हैं। इन परिच्छेदोंको पढ़नेपर मैंने पाया कि ये तीनों देश क्या कुछ कर रहे हैं, इसके उल्लेखके अलावा आपने कोई विशेष बात तो बताई ही नहीं है। इसे पढ़ने के बाद न तो स्विट्जरलैंडके तरीकेके बारेमें मेरे ज्ञानमें कोई वृद्धि हो पाई है और न बेल्जियम या अमेरिकाके ही तरीकेके बारेमें। आपने अमेरिकाकी द्रुत यातायात प्रणालीकी नकल करनेकी सलाह दी है; उसे तो पढ़कर ही मेरा सिर भन्ना उठता है । अगर आप ( उदाहरण के तौरपर कहिए) कलकत्ताको गतिशील प्लेटफार्मों और एकके ऊपर एक चार-चार रेलवे लाइनोंकी प्रणाली आदिसे युक्त करके दूसरा न्यूयॉर्क बना दें और वह शानदार करिश्मा दिखानेके लिए मुझे वहाँ ले जायें तो मेरा खयाल है कि मैं तो उस दृश्य को देखकर ही मर जाऊँगा । मेरे अनेक - बल्कि में तो असंख्य कहने जा रहा था - अमेरिकी मित्र हैं। लेकिन, उन सबने तो विश्वासपूर्वक मुझसे यही कहा है कि अमेरिकाकी अतुल समृद्धिके पीछे घोर पतन, अन्धविश्वास और बुराई छिपी हुई है और AB. तथा B.CG. के बीच जबरदस्त असमानता है एवं A.B. बड़ी सफलतापूर्वक B. C. का शोषण कर रहा है । और अकसर B.C. को तो यह भान भी नहीं रहता कि उसका ऐसा शोषण हो रहा

२. देखिए खण्ड १० ।