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४९. पत्र : हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्यायको

कुमार पार्क,बंगलोर

२४ जून,१९२७

प्रिय भाई,

आपका पत्र[१] मिला। इस पत्रके साथ आपकी चीज भेज रहा हूँ । इसका आप जैसा समझें वैसा उपयोग करें । आपने मुझे रिश्वतका लोभ दिया है।[२] लेकिन रिश्वत चूंकि एक गैर-कानूनी चीज है, इसलिए यह तो बराबर नकद दी जाती है; आपने तो मुझे साख-पत्र ( क्रेडिट नोट) ही दिया है। फिर भी, मुझे भरोसा है कि इस साख-पत्रको खुद में या दरिद्रनारा- यणके प्रतिनिधिके रूपमें मेरा कोई उत्तराधिकारी आवश्यकता पड़ने पर भुना सकेगा ।

हृदयसे आपका,

पुनश्च :

मेरे पास हस्ताक्षरके लिए [ आनेसे ] पहले सभी पत्र एक-दो और हाथोंसे गुजरते हैं । उनमें से एक. . . सिफारिशी चिट्ठियोंके लिए. . .।[३] में तो जहाँतक बनता है, किसीको सिफारिशी चिट्ठी देनेसे बचता ही हूँ। मुझे जो जानकारी मिली है, उसमें अगर कोई सचाई हो तो मैं आशा करता हूँ कि आप अपने और भारतके सम्मानकी रक्षा करेंगे । पत्र डाकमें डालने में मैंने देर इसलिए कर दी कि जो जानकारी मिली है, उसको देखते हुए मेरा कर्तव्य क्या है, इस सम्बन्धमें में अपनी अन्तरात्माका निर्देश जानना चाहता था । आज सुबह मुझे लगा कि संलग्न कागजोंके साथ आपको पत्र भेज ही देना चाहिए; और यह आशा करते हुए कि आपके सूचनार्थं मैं जो जानकारी भेज रहा हूँ, उसे आप उसी भावनासे ग्रहण करेंगे जिस भावनासे यह भेजी जा रही है और यह जानकारी देनेवाले अथवा मेरे विषयमें कुछ अन्यथा नहीं सोचेंगे। जानकारी देनेवालेके मनमें आपके प्रति कोई दुर्भावना नहीं है ।

ईश्वर हम सबका साथ दे ।

मो० क० गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० १२७७३) की फोटो - नकलसे ।

  1. २२ जूनका पत्र | श्री चट्टोपाध्यायने गांधीजीसे यूरोपमें उपयोग करनेके लिए एक परिचय-पत्र माँगा था।
  2. श्री चट्टोपाध्यायने गांधीजीसे वादा किया था कि लौटकर आनेपर जब वे राष्ट्रीय रंगशालाको स्थापना करेंगे तो नाटकोंकी भाषा हिन्दी होगी तथा दृश्यों और परिधानों में खादीका उपयोग किया जायेगा ।
  3. यहाँ मूलमें साफ-साफ पढ़ा नहीं जाता।