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५०. पत्र : पी० के० चार्लुको

कुमार पार्क,बंगलोर

२४ जून,१९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र और आपकी पत्रिकाकी एक प्रति भी मिली। पत्रिकाको मैं उलट-पुलटकर देख गया हूँ। मैं तो इसपर आपको बधाई नहीं दे सकता । बिना सोचे-समझे जल्दबाजी में इस तरहके बहुत-से उपक्रम किये जा रहे हैं। खुद मैं तो यह मानता हूँ कि पत्र-पत्रिकाओंके प्रकाशनमें कुछ अति ही की जा रही है और जरूरत से ज्यादा पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित करनेसे राष्ट्रका कोई हित नहीं हो सकता । आपकी पत्रिकासे तो मुझे ऐसा कुछ नहीं लगता कि आपके पास लोगोंको देनेके लिए कोई विशेष सन्देश है। इस समय आवश्यकता सिर्फ चुपचाप लगातार काम करते जानेकी है । मैं तो 'कथनीसे करनी भली' वाली कहावतका कायल हूँ । सचमुच कितना अच्छा हो, अगर में अब भी आपको इस दिशामें और आगे बढ़नेसे रोक सकूँ ।

१८९६में जब मैं मद्रासमें था, उस समय मुझे आपके पितासे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत पी० के० चालु

सम्पादक व प्रकाशक

"धर्म"

६, सुंकुरामा चेट्टी स्ट्रीट, जी० टी०

मद्रास

अंग्रेजी (एस० एन० १४१७२ ) की माइक्रोफिल्मसे ।