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५१. पत्र : पी० राजगोपाल अय्यरको

कुमार पार्क,बंगलोर

२४ जून, १९२७

प्रिय राजगोपालन्,

आपकी भेजी रिपोर्ट मैंने पढ़ ली है। आप अच्छा काम कर रहे हैं। एक ही बार में बहुत ज्यादा करनेकी कोशिश न कीजिए; बल्कि धीरे-धीरे एक-एक कदम करके आगे बढ़िए और इतनी गहराई में न उतरिए कि आप थाह ही न पा सकें । पहले आर्थिक स्थितिपर ध्यान दीजिए, फिर शारीरिक, तब मानसिक और फिर आध्यात्मिक स्थितिपर। ऐसा करेंगे तो आप ठोस प्रगति कर पायेंगे और कभी असफल ही नहीं होंगे। अपने इर्द-गिर्द पाँच मीलके गाँवोंकी स्थितिका जायजा लीजिए और जहाँके लोगोंके बारेमें आपको ऐसा लगे कि वे आपकी बातपर चल सकते हैं किन्तु वर्षके कुछ महीने बेकार रहनेके कारण विपन्न अवस्थामें हैं, वहाँ आप उनके सामने चरखेको पेश कीजिए, लेकिन सिर्फ भाषणके जरिए नहीं, बल्कि व्यावहा- रिक तौरपर उसकी खूबियों का प्रदर्शन करके । चरखा संघ द्वारा निर्धारित अधिकतम मजदूरीसे अधिक मेहनताना हरगिज न दीजिए, और अगर लोग आपके सन्देशको न समझें और न स्वीकारें तो आप चिन्ता न कीजिए; लेकिन साथ ही आशा भी न छोड़िए । अगर आपका विश्वास कायम रहता है और आप अपने विश्वासके अनुरूप काम भी करते जाते हैं तो आसपासके गाँव देर-सबेर अनुकूल प्रतिक्रिया भी दिखायेंगे ही । यह तो में मान ही लेता हूँ कि अपने आश्रम में आप हाथसे ओटने, धुनने और कातनेका काम कर रहे होंगे, और कोई भी काम जैसे-तैसे नहीं किया जा रहा है, बल्कि सब-कुछ यथासम्भव अच्छेसे-अच्छे तरीकेसे किया जा रहा है।

मेरी व्यक्तिगत जानकारीके लिए हर महीने एक छोटी-सी रिपोर्ट भेजते रहिए । इस समय में 'यंग इंडिया' में इसके बारेमें कुछ नहीं कहना चाहता । पहले यह संस्था अपनी जड़ तो जमा ले ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत पी० राजगांपालियर

पलायूर

बरास्ता - मुथुपेट

अंग्रेजी (एस० एन० १९७८३) की माइक्रोफिल्मसे ।