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पत्र: गंगाबहन वैद्यको

मलेरियाका जोर कुछ मालुम होता है। देवदासकी हरसका ऑपरेशन कराया अब अच्छा है।

बापुके आशीर्वाद

श्री तुलसी मेहर
चर्खा प्रचारक
नेपाल

जी० एन० ६५३२ की फोटो-नकलसे ।

१५३. पत्र: गंगाबहन वैद्यको

सोमवार [७ नवम्बर, १९२७][१]

चि० गंगाबहन (बड़ी),

मुझे गाड़ीमें अचानक रमीबहन मिल गई। वह महेमदाबादसे नडियाद तक मेरे साथ ही आई और लगातार तुम्हारे बारेमें ही बातें करती रही। उसे इस बातका दुःख है कि तुम बच्चोंको नहीं सम्भालती। मैंने कहा कि यदि गंगाबहनको उसकी शर्तपर बच्चे सौंप दिये जायें तथा उसके काममें कोई दखल न दे तो वह बच्चोंको अवश्य सम्भाल लेगी। मेरे इतना कहनेपर उसने कोई उत्तर नहीं दिया। रमीबहनको तुम पत्र तो लिखती ही होगी। उसकी भावनाएँ शुद्ध हैं। आजकल वह अक्षरज्ञान प्राप्त करनेमें जुटी हुई है।

तुमपर जो जिम्मेदारी आ पड़ी है उससे जरा भी विचलित मत होना । तुमने अबतक जो ज्ञान और अनुभव प्राप्त किया है उसकी परीक्षा इसी समय होगी। तुम शान्ति, धैर्य तथा उदारतासे सभी कठिनाइयोंको दूर कर सकोगी। जैसे अकेला समुद्र भी नदियोंको अपनेमें समा लेता है, उन्हें शुद्ध करता है और फिर उसी पानीको लौटा देता है, उसी प्रकार यदि तुम अकेली ही समुद्रके समान बन जाओ तो सभीको आश्रय दे सकोगी। जैसे समुद्र अच्छी और बुरी नदियोंमें भेद न करके सभी को शुद्ध करता है उसी प्रकार जिसका हृदय अहिंसा और सत्यके द्वारा शुद्ध होकर विशाल बन गया है, ऐसे एक ही व्यक्तिके हृदयमें सब समा जाते हैं, तिसपर भी वह न तो उफनता है और न उसमें किसी प्रकारका विकार उत्पन्न हो पाता है। तुम्हें ऐसा ही बनना है, यह याद रखना ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ८७०६) से ।
सौजन्य : गंगाबहन वैद्य
  1. बापुना पत्रो-६ : गं० स्व० गंगाबहेनने के आधारपर ।