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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आध्यात्मिक मामलोंपर जारी रही; बातचीत खुले दिलसे चली और उसमें एक दूसरेके प्रति आदरका भाव विद्यमान था। उसमें कोई तर्क-वितर्क या शास्त्रार्थ नहीं था।

बातचीत लगभग १ घंटेतक जारी रही।. . .विदा लेते समय गांधीजीने कहा कि इस भेंटसे मेरा बड़ा हित हुआ है और मैं आचार्यकी इच्छाओंका ध्यान रखूँगा एवं उन्हें अपनी सामर्थ्यके अनुसार पूरा करूँगा।

चूँकि गांधीजी ६ बजेके बाद भोजन नहीं करते, इसलिए श्री च॰ राजगोपालाचारी ५-३० बजे उठकर गये और उन्हें भोजनकी याद दिलाई। लेकिन गांधीजी बोले : "आचार्यके साथ बातचीत ही मेरा आजका भोजन है।" इसके बाद आचार्यने गांधीजीको एक बड़ा निम्बू-फल भेंट किया। गांधीजीने यह कहते हुए कि इस फलसे मुझे विशेष प्रेम है उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।

बादमें उसी शाम कोयम्बटूरमें हुई एक सार्वजनिक सभामें जब गांधीजी से उनकी आचार्यके साथ हुई वार्ताके बारेमें प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह व्यक्तिगत और गोपनीय थी इसलिए पत्रकारोंको उसमें नहीं आने दिया गया था।

[अंग्रेजी से]
श्री जगद्गुरु दिव्य-चरित्रम्

परिशिष्ट ५
गांधी-इविन समझौता[१]

(१)

. . .वाइसरायसे मिलने पर गांधीजीने देखा कि यह भेंट सर्वथा भावशून्य थी। लॉर्ड इविनने गांधीजीके हाथमें भारत मन्त्रीकी साइमन आयोग सम्बन्धी घोषणा पकड़ा दी, और यह पूछनेपर कि क्या इस भेंटका मुद्दा कुल इतना ही था, लॉर्ड इर्विनने कहा 'हाँ'। गांधीजीने कहा, मुझे लगता है कि यह काम तो एक आनेके लिफाफेसे भी हो सकता था।

[अंग्रेजीसे]
द हिस्ट्री ऑफ द इंडियन नेशनल कांग्रेस, खण्ड १ (१८८५-१९३५)

(२)

वास्तव में इस पहली भेंटके दौरान गांधी और इविनके बीच काफी लम्बी बातचीत हुई और दोनोंने एक-दूसरेकी बातको बड़े ही धैर्य और शिष्टता के साथ सुना। गांधी बड़े अच्छे मूड में थे. . .और उन्होंने कहा कि वह वाइसरायको खादीका समर्थक

  1. नवम्बर, १९२७ को; देखिए "पत्र : सी॰ एफ॰ एन्ड्र्यूजको", ११-११-१९२७।