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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और इस उद्देश्यकी पूर्ति के लिए सम्राट्की सरकारका इरादा है कि वह संसदसे इन प्रस्तावोंको दोनों सदनोंकी एक संयुक्त समिति के सामने विचारार्थ प्रस्तुत करनेको कहे, और इसकी व्यवस्था करे कि इस समिति के सामने भारतीय केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभाके विचारोंको प्रस्तुत करनेके लिए उस सभा के प्रतिनिधिमण्डलोंको निमन्त्रित किया जाये तथा उन अन्य संस्थाओंको अपने विचार प्रकट करनेकी सहूलियत दी जाये जिनके साथ समिति परामर्श करना चाहे।

सम्राट्की सरकारकी रायमें जो कार्यविधि निर्धारित करनेका विचार है उससे उपर्युक्त अपेक्षाओंकी बहुत बड़ी हदतक पूर्ति हो जाती है।

स्पष्ट है कि ऐसा एक आयोग—जिसमें ब्रिटेनकी सभी राजनीतिक पार्टियोंके प्रतिनिधि हैं और जिसके अध्यक्ष एक ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी सार्वजनिक महत्ताका आधार उनकी विशिष्ट योग्यता और चरित्रबल है—एक अत्यन्त जटिल संवैधानिक सवालपर नवीन, कुशल और निष्पक्ष दृष्टिसे विचार करेगा।

इसके सिवा, ऐसा माना जा सकता है कि संसद् अपने ही कुछ सदस्योंके निष्कर्षोंपर अनुकूल दृष्टिसे विचार करेगी क्योंकि वह ऐसा मानेगी कि वे सदस्य एक समान विचारधाराका प्रतिपादन कर रहे हैं और निर्णयके उन्हीं मानदण्डोंको लागू कर रहे हैं जिन्हें संसद् सहज ही अपने मानदण्ड मानेगी। जहाँतक मेरा सवाल है, मुझे कोई सन्देह नहीं है कि जो लोग भारतीय प्रगतिके इच्छुक हैं उनके लिए उसे शीघ्र प्राप्त करनेका सबसे निश्चित रास्ता यही है कि वे संसद्को राजी कर लें, और यह चीज वे संसद्के दोनों सदनोंके सदस्योंके जरिये जितने निश्चयपूर्वक कर सकते हैं उतना किसी अन्य तरीकेसे नहीं कर सकते। भारतके राष्ट्रवादी लोग यदि संसद् सदस्योंको मौकेपर कायल कर दें तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती और इसीलिए मैं और आगे जाकर कहूँगा कि जो लोग भारतकी तरफसे बोलते हैं, यदि उनको उस मामले में विश्वास है जिसे वे भारतकी ओरसे प्रस्तुत करते हैं तो उन्हें इस बातका स्वागत करना चाहिए कि ब्रिटिश संसद् के कुछ सदस्योंको भारतीय जीवन तथा राजनीतिके सम्पर्क में आनेका अवसर दिया जा रहा है।

इससे मी ऊपर, जहाँ सुधारोंको और व्यापक बनाने के इच्छुक लोगोंके लिए यह बात असंदिग्ध रूपसे लाभजनक है कि उनकी बात सीधे वे लोग सुनें जिन्हें संसद् का पूर्ण विश्वास प्राप्त है, वहीं मैं इतना आशावादी भी हूँ कि यह मान सकूँ कि सम्राट्की सरकारने जो तरीका चुना है वह भारतीयोंको इन महान घटनाओंको प्रभावित करनेका एक ऐसा मौका प्रदान करता है जो उन्हें अन्य किसी तरीके से प्राप्त नहीं हो सकता था। क्योंकि भारतीय विधानमण्डलोंके प्रतिनिधियोंकी मार्फत वे न केवल आयोगके सामने अपने विचार स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त कर सकेंगे बल्कि उनको यह अधिकार भी होगा कि सम्राट्की सरकार जो भी प्रस्ताव रखे उसके ऊपर वे संसद्की संयुक्त समितिमें तफसीलसे या सिद्धान्त के प्रश्नपर अपना विरोध प्रकट कर सकें और अपने हल सुझा सकें। इसके अलावा यह भी देखनेकी बात है कि इस अवस्थामें संसद्से विशिष्ट प्रस्तावोंपर अपना मत व्यक्त करनेको नहीं कहा