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परिशिष्ट

जातियोंको इस बातका पूरा आश्वासन देनेकी दृष्टिसे कि विधान मण्डलों में उनके हितोंकी रक्षा की जायेगी, प्रत्येक प्रान्त में तथा केन्द्रीय विधान मण्डल में फिलहाल मौजूदा तौर पर ऐसा प्रतिनिधित्व दिया जाये, और चाहने पर जनसंख्या के आधार पर संयुक्त निर्वाचक मण्डल में सीटोंके संरक्षणकी व्यवस्थाकी जानी चाहिए।

बशर्तें कि परस्पर सहमति से अल्पसंख्यक वर्गीको अन्योन्य रूपसे ऐसी रियायत दी जायेगी ताकि किसी भी प्रान्त या प्रान्तों में जनसंख्या के आधारपर वे जितनी सीटोंके हकदार होंगे उसके अनुपात में उन्हें और ज्यादा प्रतिनिधित्व मिल सके, और प्रान्तोंके लिए इस प्रकार निश्चित किया गया अनुपात प्रान्तोंसे केन्द्रीय विधान मण्डल में दोनों जातियोंके प्रतिनिधित्व में भी कायम रखा जायेगा।

पंजाब में सीटोंके संरक्षणका निर्णय करते समय एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक जातिके नाते सिखोंके प्रतिनिधित्व के प्रश्नपर पूरा ध्यान रखा जायेगा।

३ (क) कांग्रेसकी राय में मुसलमान नेताओं का यह प्रस्ताव कि उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त और ब्रिटिश बलूचिस्तान में उसी पैरा ए पर सुधार लागू किये जायें जिस पैरा ए पर अन्य प्रान्तों में लागू किये जायेंगे, एक न्यायसम्मत और औचित्यपूर्ण प्रस्ताव है और उसे लागू किया जाना चाहिए, तथा साथ ही इस बातका भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि उपर्युक्त प्रान्तों में प्रशासनिक सुधारोंके साथ-साथ न्याय-प्रशासनकी उपयुक्त प्रणाली भी लागू की जाये;

(ख) (१) इस प्रस्तावके सम्बन्ध में कि सिन्धको एक पृथक प्रान्तके रूप में गठित किया जाना चाहिए, इस कांग्रेसकी राय है कि अब भाषाके आधारपर प्रान्तोंके पुनर्गठनका समय आ गया है। भाषावार प्रान्तोंके गठनका सिद्धान्त कांग्रेसके संविधानमें स्वीकार किया गया है :

(२) इस कांग्रेसका यह भी अभिमत है कि प्रान्तोंके भाषावार पुनर्गठनका काम तुरन्त हाथ में लिया जाना चाहिए और भाषा के आधारपर इस प्रकारके पुनर्गठनकी माँग करनेवाले किसी भी प्रान्तको पुनर्गठित किया जाना चाहिए;

(३) इस कांग्रेसका यह भी अभिमत है कि आन्ध्र, उत्कल, सिन्ध और कर्नाटकको पृथक प्रान्तोंमें पुनर्गठित करके इस दिशामें आरम्भ किया जाये;

४. कि भावी संविधान में आत्माकी स्वतन्त्रताकी गारंटी होगी और प्रान्तीय अथवा केन्द्रीय विधान मण्डलोंको आत्माकी स्वतन्त्रतामें हस्तक्षेप करनेवाला कोई कानून बनानेका अधिकार नहीं होगा;

"आत्माकी स्वतन्त्रता" का अर्थ है विश्वास और पूजाकी स्वतन्त्रता, धार्मिक समारोहों और संगठनोंकी स्वतन्त्रता तथा अन्य लोगोंके समान अधिकारोंमें हस्तक्षेप किये बिना और उनकी भावनाओंका ध्यान रखते हुए धार्मिक शिक्षा और प्रचारकी स्वतन्त्रता;

५. कि प्रान्त या केन्द्र, किसी भी जगहके विधान मण्डलमें अन्तर्जातीय मामलों से सम्बन्धित ऐसा कोई विधेयक, प्रस्ताव, प्रावेदन या संशोधन उस स्थितिमें प्रस्तावित नहीं किया जायेगा और न उसपर विचार किया जायेगा या उसे पास किया

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