जायेगा जब उस विधान मण्डल में उससे प्रभावित होनेवाली दोनोंमें से किसी भी जातिके तीन-चौथाई सदस्य ऐसे विधेयक, प्रस्ताव, प्रावेदन या संशोधनको पेश करने, उसपर विचार करने या उसे पास करनेका विरोध करें।
"अन्तर्जातीय मामलों" का अर्थ है ऐसे विषय जिन्हें विधान मण्डलके प्रत्येक सत्रके आरम्भ में सम्बन्धित विधान मण्डल द्वारा नियुक्त की गई हिन्दू और मुसलमान, दोनों जातियोंके सदस्योंकी संयुक्त स्थायी समिति में आपस में तय कर लिया गया हो।
भाग ख—धार्मिक तथा अन्य अधिकार
यह कांग्रेस निश्चय करती है कि :
१. हिन्दुओं और मुसलमानों द्वारा किये जानेवाले अधिकारोंके दावोंके प्रति—हिन्दुओंके इस अधिकारके दावेके प्रति कि वे जहाँ चाहें बाजा बजा सकते हैं और जुलूस निकाल सकते हैं, तथा मुसलमानोंके इस अधिकारके दावेके प्रति कि वे जहाँ चाहें कुर्बानी अथवा खूराकके लिए गोहत्या कर सकते हैं— बिना कोई पूर्वग्रह रखे मुसलमान लोग मुसलमानोंसे अपील करते हैं कि गायके विषयमें वे हिन्दुओंकी भावनाको यथासम्भव चोट न पहुँचायें और हिन्दू लोग हिन्दुओंसे अपील करते हैं कि वे यथासम्भव मस्जिदोंके आगे बाजा बजानेके मामले में मुसलमानोंकी भावनाओंको चोट न पहुँचायें।
और इसलिए यह कांग्रेस हिन्दुओं और मुसलमानों, दोनोंसे आग्रह करती है। कि वे गौहत्या रोकने या मस्जिदके सामने बाजोंका बजना रोकनेके लिए हिंसा या कानूनकी मदद न लें।[१]
२. यह कांग्रेस यह भी निश्चय करती है कि प्रत्येक व्यक्ति या समूहको इस बातकी स्वतन्त्रता है कि वह अन्य किसी व्यक्ति या समूहको तर्क करके या समझा बुझाकर उसका धर्म-परिवर्तन कर दे या पुनःधर्म परिवर्तन कर दे, किन्तु किसी व्यक्ति या समूहको इस बातका अधिकार नहीं होगा कि वह छल, बल अथवा अन्य किसी अनुचित तरीकेसे जैसे कि धनका लालच देकर धर्म-परिवर्तन कराये या धर्म-परिवर्तन को रोके। अट्ठारह वर्षसे कम आयुके व्यक्तिका धर्म-परिवर्तन नहीं किया जाना चाहिए; हाँ, माता-पिता या अभिभावकके साथ-साथ उसका धर्म-परिवर्तन किया जाये तो अलग बात है। यदि अट्ठारह वर्ष से कम आयुका कोई व्यक्ति अपने माता-पिता या अभिभावकसे अलग अन्य धर्मावलम्बियोंके बीच असहायावस्थामें पाया जाये तो उसे उसके स्वधर्मावलम्बियोंको सौंप दिया जाना चाहिए। जिस व्यक्तिका धर्म परिवर्तन किया जाये, या पुनर्धर्म परिवर्तन किया जाये, उसके नामके बारेमें तथा जहाँ किया जाये, जब किया जाये औ रजिस प्रकार किया जाये, इसके बारेमें कोई गोपनीयता नहीं होनी चाहिए, और न धर्म-परिवर्तन या पुनर्धर्म परिवर्तनके समर्थन में कोई हर्ष प्रदर्शन किया जाना चाहिए।
- ↑ २७-१२-१९२७ के हिन्दूके अनुसार इस खण्डका मसविदा मूलतः गांधीजीने तैयार किया था और थोड़ेसे शाब्दिक हेर-फेर के साथ कांग्रेस द्वारा स्वीकार किया गया था।