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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चर्चा की है और कार्य समितिको राष्ट्रीय मन्त्रिमण्डलके समान बताया है। क्या मैं आपको याद दिला सकता हूँ कि आप कार्य समितिके एक सदस्य हैं और एक सदस्यके लिए कांग्रेस अधिवेशन समाप्त होनेके दूसरे ही दिन कांग्रेस और उसके मुख प्रस्तावों की आलोचना और निन्दा करना एक असाधारणसी बात है। मद्रास कांग्रेस अधिवेशनकी सफलता पर सभी ओरसे बधाईके स्वर गूँजते रहे हैं। यह गलत हो सकता है या हो सकता है कि इसके लिए शायद पर्याप्त आधार न हो, लेकिन देशमें असंदिग्ध रूपसे ऐसी ही धारणा बनी है और सभी सार्वजनिक कार्यों में वातावरण का बहुत महत्व होता है। और अब अधिकांश लोग जो वैसा मानते थे, वे आपकी आलोचनाओंसे हक्का-बक्का रह गये हैं और सोचते हैं कि कहीं पहलेका उनका उत्साह जरूरत से ज्यादा और गलत तो नहीं था।

आपने स्वतन्त्रता प्रस्तावको 'उतावली में सोचा और बिना विचारे स्वीकार किया गया' बताया है। मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ कि किस प्रकार देशने अनेक वर्षोंसे इस प्रश्न पर चर्चा की है और विचार किया है और किस प्रकार मैं पिछले पाँच वर्ष या उससे अधिक समय से स्वयं उसके ऊपर सोचता रहा हूँ, इसके ऊपर चर्चाएँ करता रहा हूँ, सभाओं में इसके बारेमें बोलता रहा हूँ, इसके बारेमें लिखता रहा हूँ, और सामान्य रूपसे यह बात हमेशा मेरे दिमाग में सबसे ऊपर रही है । ऐसी स्थितिमें मुझे लगता है कि भाषाकी कितनी ही खींच-खाँचसे भी' उतावली में सोचा गया इन शब्दोंका औचित्य नहीं ठहरता। जहाँ तक 'बिना विचारे स्वीकार किया गया' का सवाल है, आप शायद नहीं जानते कि इस प्रस्तावपर विषय समिति में लगभग तीन घंटे तक विचार किया गया और इसके पक्ष और विपक्षमें एक दर्जन से ज्यादा लोगोंने भाषण दिया। अंततः जैसा कि आप जानते हैं, इस प्रस्तावको लगभग सर्वसम्मति से विषय समितिमें और खुले अधिवेशनमें, दोनों जगह पास कर दिया गया। क्या वे सभी लोग जिन्होंने समितिमें और अधिवेशनमें इसके पक्ष में मत दिया, 'लापरवाह' लोग थे? क्या यह पूर्व धारणा जरा ज्यादा नहीं है? और यह बात ज्यादा सचाईके साथ क्यों नहीं कही जा सकती कि जिन थोड़ेसे लोगोंने इस प्रस्तावका विरोध किया वे गलती पर थे? आप कहते हैं कि पिछले वर्ष इस प्रस्ताव को समितिने अस्वीकार कर दिया था। मुझे नहीं पता कि आप इससे क्या निष्कर्ष निकालते हैं, लेकिन मुझे यह बात स्पष्ट प्रतीत होती है कि इसके अर्थ केवल यही हैं कि समिति और कांग्रेस आजकी ही तरह पहले भी इसे पास करनेको उत्कंठित थे, लेकिन आपका लिहाज करके उन्होंने वैसा नहीं किया। मुझे आशा है आप मुझसे सहमत होंगे कि किसी सार्वजनिक प्रश्न पर अपनी निश्चित रायको किसी व्यक्तिके प्रति अपने लिहाजके कारणवश ही दबाना किसी संगठनके लिए स्वस्थ राजनीति नहीं हो सकती।

मैं यहाँ प्रस्तावके गुणोंकी चर्चा नहीं कर रहा हूँ। लेकिन मैं केवल इतना ही कहूँगा कि लम्बे समय तक और सावधानी के साथ विचार करनेके बाद मेरे लिए स्वतंत्रता तथा स्वतंत्रतामें जो भी अन्तर्निहित चीजें हैं, उनकी माँग मेरे लिए बहुत