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परिशिष्ट

अधिक महत्व रखने लगी है, और लगभग किसी भी अन्य चीजको अपेक्षा इसको ज्यादा महत्व प्रदान करता हूँ। आपने इस प्रश्न पर उस दिन मद्रासमें जो कुछ कहा उसके एक-एक शब्द पर मैंने विचार किया है, और इससे मेरी रायकी और पुष्टि हुई है। लेकिन एक छोटेसे दायरेको छोड़कर उसके बाहरका कोई आदमी इसके बारेमें आपकी स्थितिको समझता है, इसमें मुझे सन्देह है। मुझे विश्वास है कि अन्य लोग भी—उदारपन्थी आदि—जो औपनिवेशिक स्वराज्य चाहते हैं, आपकी तरह नहीं सोचते। साइमन बहिष्कारके प्रश्न पर सर अली इमामने यहाँ कल एक सभा में भाषण दिया था। मैं भी कुछ मिनटों के लिए बोला, और राजा चार्ल्सके सरकी तरह स्वतंत्रताका सवाल उठ पड़ा और मैंने उसपर जोर दिया। सभाके बाद अली इमामने मुझसे कहा कि उस पर जोर देकर मैंने अच्छा किया था; उन्होंने कहा कि वह और उनके साथी शायद देर-सवेर इसके समर्थक हो जायेंगे, लेकिन फिलहाल उन्हें कुछ आत्म-संयमसे काम लेना जरूरी है क्योंकि वे अपने साथ बहुतसे लोगोंको लेकर चलना चाहते हैं। मुझे विश्वास है कि उदारवादी लोग कहें चाहे जो कुछ, लेकिन उनमें से अधिकांश लोग स्वतंत्रता प्रस्तावका स्वागत करते हैं क्योंकि वे महसूस करते हैं कि इससे उनकी स्थिति मजबूत होती है। लेकिन वे इसे पसन्द करें या न करें, मेरी समझ में यह बात बिल्कुल नहीं आती कि कोई राष्ट्रीय संगठन औपनिवेशिक स्वराज्यको अपना आदर्श और लक्ष्य कैसे बना सकता है। इसके विचारमात्रसे मेरा दम घुटने लगता है।

मैंने ब्रिटिश मालके बहिष्कार सम्बन्धी प्रस्ताव में कोई विशेष रुचि नहीं ली। इसका मुख्य कारण यह था कि मुझे लगा कि आप इसे बिलकुल ठीक नहीं मानेंगे और जब तक कमोबेश सभी लोग एक जुट होकर कोशिश न करें तबतक बहिष्कार सफल नहीं हो सकता। लेकिन मुझे इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि यदि हमारे अपने दलमें कुछ मतैक्य हो तो बहिष्कारको आंशिक रूप से सफल बनाया जा सकता है। आपने चीन में बहिष्कारको आश्चर्यजनक सफलता के बारेमें अवश्य पढ़ा होगा। चीनमें ऐसी कोई विशेषता नहीं थी जो हममें नहीं है, और ऐसा माननेका कोई बुनियादी कारण नहीं है कि जिस मामले में उन्हें सफलता मिली उसमें हम सफल नहीं हो सकते। लेकिन यह मान भी लें कि उसके सफल होने की सम्भावना नहीं है, तो भी क्या कुल मिलाकर वह इतनी हास्यास्पद चीज है? क्या खद्दरके जरिये विदेशी कपड़े के हमारे बहिष्कारको ऐसी असाधारण सफलता मिली है? क्या हमारा खादी मताधिकारका सिद्धान्त सफल हुआ है? वे चीजें सफल नहीं हुई हैं, फिर भी आप उन्हें देश पर और कांग्रेस पर आग्रहपूर्वक थोपने में नहीं हिचकते क्योंकि आपको लगता है और ठीक ही लगता है, कि वे पूरी तरह सफल न भी हों तो भी उनसे देशको लाभ होगा।

मुझे याद है कि केलकर, अणे और उनके साथी कार्य समितिके सदस्य होते हुए भी खादी सम्बन्धी कांग्रेस प्रस्तावकी किस प्रकार हँसी उड़ाया करते थे, और मुझे यह सोचकर बहुत तकलीफ होती है कि आप भी कांग्रेसके महत्वपूर्ण प्रस्तावोंकी