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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खिल्ली उड़ा रहे हैं। केलकर और अणे जैसे लोगोंका कोई महत्व नहीं है और वे क्या कहते और करते हैं इसकी मुझको परवाह नहीं है। लेकिन आप जो कुछ कहते हैं या करते हैं, उसकी मैं जरूर बहुत ज्यादा परवाह करता हूँ।

दो प्रस्तावोंकी विशेष रूपसे निन्दा करनेके बाद आप अन्य प्रस्तावोंकी बहुत हल्के ढंगसे चर्चा करते हुए उन्हें 'अनेक गैरजिम्मेदाराना प्रस्ताव' बताते हैं। एकता प्रस्तावको छोड़कर कांग्रेसका हर प्रस्ताव इस शीर्षकके अन्तर्गत आ सकता है। और इस प्रकार विषय समितिके २०० से ऊपर सदस्यों तथा कांग्रेसके बहुत सारे लोगोंकी मेहनतको यों ही सरसरी तौर पर और तिरस्कारके साथ बरतरफ कर दिया गया है। उन अभागे लोगोंके लिए, जो भले ही दूरन्देश और कुशाग्र बुद्धि न हों, लेकिन जिन्होंने अपनी क्षमताभर कोई कसर नहीं उठा रखी और जितना कुछ कर सकते थे उतना किया, यह बात बड़े ही दुर्भाग्यकी है। हम सभी लोग स्कूली लड़कोंकी 'बाद-विवाद सोसाइटी' के स्तर पर रख दिये गये हैं और आप एक क्रुद्ध स्कूल मास्टरकी तरह हमारी ताड़ना करते हैं, लेकिन एक ऐसे स्कूल मास्टरकी तरह जो हमारा मार्गदर्शन नहीं करता, या हमें शिक्षा नहीं देता, लेकिन जो समय-समय पर केवल हमारी गलतियोंको ही इंगित करता है। व्यक्तिशः मेरी बड़ी इच्छा है कि काश हम सब सचमुच स्कूली लड़के होते, जिनमें स्कूली लड़कोंकी जीवन्तता, शक्ति और दुस्साहस होता, और उन राइट आनरेबुल और आनरेबुल महानुभावोंकी तरह न होते जो हमेशा आगा-पीछा सोचते रहते हैं और कीमतका तखमीना लगाते रहते हैं।

आप जानते हैं कि एक ऐसे नेताके रूपमें आपके प्रति मेरे मनमें कितनी श्रद्धा और कितना विश्वास रहा है जो इस देशको विजय और स्वतंत्रता दिला सकता है। ऐसा मैंने इस तथ्य के बावजूब किया है कि आपकी पहलेकी कुछ पुस्तकों—'इंडियन होमरूल' आदि,—में कही गई बातोंसे मैं सहमत नहीं था। मुझे लगता था और आज भी लगता है कि आप अपनी इन छोटी-मोटी पुस्तिकाओंकी अपेक्षा कहीं अधिक महान थे और हैं। सब चीजोंसे अधिक मैं कर्म और निर्भीकता तथा साहसका प्रशंसक हूँ और मैंने ये सभी गुण आपमें असाधारण मात्रामें पाये। और मुझे सहज ही लगा कि मैं आपसे कितना ही ज्यादा असहमत क्यों न होऊँ, लेकिन आपका महान व्यक्तित्व और आपके ये गुण हमें हमारे लक्ष्य तक पहुँचा देंगे। असहयोग आन्दोलनके जमाने में आप सर्वोच्च शिखर पर थे; आप अपने सहज रूपमें थे और अनायास ही आपने सही कदम उठाये। लेकिन आपके जेलसे बाहर आनेके बादसे कहीं कुछ गड़बड़ हो गया लगता है और स्पष्ट ही आप बहुत अशान्त रहे हैं। आपको याद होगा कि किस प्रकार कुछ महीनोंके अन्दर, बल्कि हफ्तोंके अन्दर आपने बार-बार अपना रवैया बदला था—जुहूसे दिये गये वक्तव्य, अहमदाबादमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक और उसके बाद आदि—और हममें से अधिकांश लोग बिल्कुल किंकर्त्तव्य विमूढ़ रह गये थे। वह किंकर्त्तव्य-विमूढ़ता तबसे बनी ही हुई है। मैंने आपसे कई बार पूछा है कि आप भविष्य में क्या करनेकी आशा रखते हैं, और आपके उत्तर