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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

त्रुटियाँ हैं जिन्हें बहुत ज्यादा महत्व प्रदान करते हैं। आपने किसी जगह कहा है कि भारतको पश्चिमसे सीखने के लिए कुछ नहीं है और वह प्राचीन कालमें ज्ञानके चरम शिखर पर पहुँच चुका है। मैं निश्चय ही इस दृष्टिकोणसे असहमत हूँ और न तो मैं यह मानता हूँ कि तथाकथित रामराज्य पुराने समय में अच्छा था, और न ही मैं उसे पुनःस्थापित देखना चाहता हूँ। मेरा विचार है कि पश्चिमी, बल्कि औद्योगिक सभ्यता भारत पर हावी होकर रहेगी; हो सकता है कि वह सभ्यता बहुतसे परिवर्तनों और संशोधनोंके साथ आये, लेकिन हर सूरत में वह मुख्यतया उद्योगवाद पर आधारित होगी। आपने उद्योगवादकी अनेक स्पष्ट त्रुटियोंकी कड़ी आलोचना की है और उसके गुणोंकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है। इन त्रुटियोंको हर आदमी जानता है और आदर्श राज्यों तथा सामाजिक सिद्धान्तोंका उद्देश्य उन्हें दूर करना है। पश्चिमके अधिकांश विचारकोंका मत है कि ये त्रुटियाँ उद्योगवादके कारण नहीं हैं बल्कि पूँजीवादी प्रणाली के कारण हैं जो दूसरोंके शोषणपर आधारित है। मैं मानता हूँ कि आपने कहा है कि आपकी रायमें पूँजी और श्रममें कोई अनिवार्य संघर्ष नहीं है। मेरे विचारसे पूँजीवादी प्रणाली में यह संघर्ष अनिवार्य है।

आपने दरिद्रनारायण—भारतमें गरीब लोगों—के दावोंका बड़े भावपूर्ण और शक्तिशाली ढंग से समर्थन किया है। मैं यह मानता हूँ कि आपने जो उपाय सुझाया है वह उनके लिए बहुत उपयोगी है, और अगर वे बड़ी तादाद में उसे अपनायेंगे तो उससे उनके दुख कुछ हदतक हल्के होंगे। लेकिन मुझे इस बात में बहुत सन्देह है कि गरीबीके बुनियादी कारणों पर इससे कोई प्रभाव पड़ेगा। भारतके बहुत बड़े भाग में आज अर्द्ध-सामंती जमींदारी व्यवस्थाके विरुद्ध आप एक शब्द भी नहीं कहते और न पूँजीपतियों द्वारा श्रमिकों और उपभोक्ताओंके शोषणके विरुद्ध कुछ कहते हैं।

लेकिन मुझे बस करना चाहिए। औचित्यकी मर्यादासे मैं पहले ही आगे जा चुका हूँ और मैं आशा करता हूँ कि आप मुझे क्षमा कर देंगे। मेरे मनका द्वन्द्व ही इसकी एकमात्र कैफियत है जो मैं दे सकता हूँ। मैं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का मंत्री नहीं बनना चाहता था क्योंकि मैं जो जरूरी लगे उसे कहने और करनेकी पूरी स्वतंत्रता चाहता था। लेकिन अन्सारीने मुझ पर यह कहकर दबाव डाला कि मेरे कई प्रस्ताव और विशेष रूप से स्वतंत्रता सम्बन्धी प्रस्ताव कांग्रेस द्वारा पास कर दिये गये हैं और इस प्रकार मुझे अपने ही रास्ते पर काम करनेकी पूरी आजादी है। मैं इस तर्कका जवाब नहीं दे सका और मुझे स्वीकार करना पड़ा। अब मैं देखता हूँ कि कांग्रेसके इन्हीं प्रस्तावोंका महत्व घटाने और उनकी खिल्ली उड़ानेकी हरचन्द कोशिश की जा रही है और यह अनुभव पीड़ाजनक है।

सस्नेह आपका,
जवाहरलाल

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३०३९) की फोटो-नकलसे।