पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/११

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सात

उद्देश्य था,"इसमें सांसारिक उद्देश्य था," (पृ० ११७) साम्राज्यके राजनीतिज्ञोंका अनुग्रह प्राप्त करके स्वराज्य पानेका सुपात्र बन सकना (पृ० ११८) ।

२३ अप्रैल, १९२८ को अपने भतीजे मगनलाल गांधीका बिहारमें थोड़े ही दिन की बीमारीके बाद देहान्त हो जानेसे गांधीजीको दारुण व्यक्तिगत क्षतिका अनुभव हुआ। मगनलाल वहाँ पर्दा-विरोधी आन्दोलनमें अपनी लड़कीकी सहायता करने गये हुए थे। गांधीजीका सपना यह था, और उन्होंने इसके लिए पूरा प्रयत्न भी किया था कि वे मगनलालको आश्रमका भार सौंप कर उस ओरसे निश्चिन्त हो जायेंगे इसलिए उनके शोकका कोई पार नहीं था । २६-४-१९२८ को उन्होंने एण्ड्रयूजको लिखा, 'मेरे जीवनकी शायद यह सबसे बड़ी परीक्षा है " ।"मेरा सबसे अच्छा सहयोगी चला गया " शीर्षक लेखमें उन्होंने मगनलालको "मेरे हाथ, मेरे पैर, मेरी आंखें" बताया। उन्होंने आगे कहा :"मुझे यह लेख लिखते हुए भी प्यारे पतिके लिए विलाप करती हुई उसकी विधवाकी सिसकी सुनाई पड़ रही है। मगर वह क्या समझेगी कि उससे अधिक अनाथ मैं हो गया हूँ ? अगर ईश्वरमें मेरा जीवन्त विश्वास न होता तो आज मैं उसकी मृत्युके शोकमें बिलकुल पागल हो गया होता । वह मुझे अपने सगे पुत्रोंसे भी अधिक प्रिय था...उसका जीवन मेरे लिए प्रेरणादायक है, नैतिक नियमकी अमोघता और उच्चताका ज्वलन्त उदाहरण है (पृ० २८१) । एक गुजराती लेखमें उन्होंने बताया कि मगनलालने किस तरह अपने जीवन द्वारा इस सत्यको स्पष्ट किया कि "देश-सेवा, विश्व-सेवा, आत्मज्ञान और ईश्वर-दर्शन ...एक ही वस्तुके भिन्न-भिन्न रूप हैं (१० २९८)। अपने पुत्र मणिलालको पत्र लिखते हुए, ७ मईको उन्होंने कहा,"मुझे अभी ऐसा लग रहा है कि जीवन कुछ बदल गया है। अदृश्य रीतिसे और अनिच्छापूर्वक भीतर ही-भीतर एक संघर्ष चल रहा है। मगनलालकी आत्मा मुझपर छाई हुई है" (पृ० ३१६) ।

फिर भी, जैसा कि गांधीजीने एन मेरी पीटर्सनको एक पत्र में स्पष्ट किया, ईश्वरमें उनकी आस्थाने उस दुःखको प्रसन्नतामें बदल दिया और उनमें “अधिक सेवा और अधिक लगनके लिए अभिरुचि” पैदा की (पृ० ३२६) । इसलिए उन्होंने अपना सारा ध्यान अपनी 'सर्वोत्तम कृति' आश्रमको, (पृ० १, पृ० २६७) सुधारने और 'उसे उसके स्वीकृत आदशोंके अनुरूप बनाने, (पृ० ३६२) पर लगाया । गुजरात विद्यापीठकी तरह, यहाँ भी वे गुणवत्तापर सब कुछ निछावर कर देनेके लिए तैयार थे । आश्रमके विधानमें उन्होंने संशोधन किया, ब्रह्मचर्य-सम्बन्धी नियम अनिवार्य कर दिया और इसपर जोर दिया कि सभी आश्रमवासियोंके लिए एक ही रसोई-घर हो । संशोधित विधान, जो "मुख्य कार्यकर्ताओंके संयुक्त प्रयत्नोंका परिणाम था ",'यंग इंडिया' में प्रकाशित किया गया और उसपर आलोचनाएँ और सुझाव माँगे गये ।

यूरोपकी सम्भावित यात्राका यहाँ कई जगह उल्लेख है, पर वह यात्रा अन्ततः हुई नहीं । यात्राका मुख्य उद्देश्य रोमाँ रोलाँ और शान्तिके ध्येयमें लगे अन्य यूरोपीय