६७. पत्र : प्रागजी के० देसाईको
२७ फरवरी, १९२८
चि० प्रागजी,
तुम्हारा पत्र मिला । तुम सचमुच ही मुश्किलमें पड़ गये हो । धैर्य तथा सत्य निष्ठासे सभी समस्यायें हल हो जायेंगी । लोभके वश होकर कभी असत्यको प्रोत्साहन न देना। मैंने रिचको अपने विचार लिख भेजे हैं। उनका काफी लम्बा पत्र आया है। उसे मैंने ध्यानपूर्वक पढ़ लिया है। मैं मानता हूँ कि आइन्दा अनधिकारी व्यक्तियोंको लानेका प्रयास बिलकुल बन्द हो जाये तो बाजी हमारे हाथमें रहेगी। शास्त्रीजीको एक वर्ष और रखनेका प्रयत्न करना । यहाँपर मैं भी प्रयत्न करूंगा। मेढ कैसा चल रहा है ? अब तुम्हारे मामलेके बारेमें निर्णय होगा। किस तरहके फैसलेकी आशा है ?
मेरा स्वास्थ्य ठीक रहता है। घबरानेकी कोई बात नहीं है। बारडोली आनेके लिए मन करे, तो अपनेको रोकना ।
बापूके आशीर्वाद
६८. पत्र: रामनारायण चौधरीको
२७ फरवरी, १९२८
भाई रामनारायण,
आपका पत्र मिला। मुझे तो कुछ पता भी नहीं था कि मेरे बारेमें 'श्रद्धानन्द' में क्या लिखा जाता है। मैं एक दो अखबार चंद मिनिटके लिए देख लेता हूं। मेरा बचाव कोई भी करे वह भी मैं नहीं चाहता हूं। मेरे निमित्तसे किसी पर हमला किया जाये वह मुझे पसन्द नहीं है। इस पत्रका जैसा चाहे वैसा उपयोग करें। मैं 'प्रताप' को लिखता हूँ ।'
आपका,
मोहनदास
बापू : मैंने क्या देखा क्या समझा ?
१. देखिए “ पत्र: एन० डब्ल्यू० रिचको”, २७-२-१९२८ ।
२. श्रद्धानन्दके में लिखे विनायक राव सावरकरके एक लेखकी प्रतापने अपने एक सम्पादकीय में कड़ी आलोचना की थी। प्रतापको लिखा गया गांधीजीका पत्र उपलब्ध नहीं है।