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६९. पत्र : रेवाशंकर झवेरीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
[२९ फरवरी, १९२८ से पूर्व ]

आदरणीय रेवाशंकरभाई,

आपका पत्र मिला ।

डा० मुथुको तार भेजकर ठीक ही किया है। मुझे तो उनका अच्छा ही अनुभव हुआ है। वह प्रसिद्ध तो बहुत हैं। उनके आनेकी खबर आये तो मुझे तार देना, ताकि मैं उन्हें फिर पत्र लिख सकूँ। उनके तारके जवाबमें पत्र तो लिख दिया था।

यदि वे कुछ मिलनसार व्यक्ति लगें तो अपनी जाँच भी करवा लेना। सूजन हो जाना तो हृदयकी निर्बलताका सूचक है। घूमना-फिरना बन्द करना तो ठीक ही है। लेकिन आपको ताजी हवाकी सख्त जरूरत है।

मणिलाल चि० जेकी को तुरन्त बुला रहा है। ऐसा लगता है कि अदनमें उसका काम ठीक चल रहा है। उसने जेकीकी यात्राका खर्च भी थॉमस कुकको दे दिया है। उसके पोतोंमें पानी भर गया है और अदनमें शल्यक्रिया कराना चाहता है इसीलिए जेकीको बुला रहा है। मुझे लगता है कि वह बीमार न होता तो भी उसे बुलाता । बच्चोंको भी बुलाया है। जेकीका यहाँ सब अच्छी तरह जम गया है। उसके बच्चे भी खूब पढ़ने लगे हैं। सबका स्वास्थ्य ठीक रहता है परन्तु मुझे लगता है कि यदि मणिलाल बुला रहा है तो अदन चले जाना जेकीका स्पष्ट धर्म है। वह भी जानेके लिए तैयार है। इस सम्बन्धमें आप अपनी राय लिख भेजें ताकि उसके अनुसार कर सकूँ ।

मैं ठीक हूँ ।

मोहनदासके प्रणाम

गुजराती (जी० एन० १२७३) की फोटो--नकलसे।



१. विषय-वस्तुमे स्पष्ट है कि यह २९ फरवरीसे पहले लिखा गया होगा देखिए "पत्र: रेवाशंकर झवेरीको ”, २९-२-१९२८ ।

२. जयकुँवर, डा० प्राणजीवन मेहताकी पुत्री ।