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७०. पत्र : अब्बास तैयबजीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२९ फरवरी, १९२८

प्रिय मुर्ररर...'

आप पच्चीस साला एक खासे जवान आदमी हैं। आप बारडोलीके जोश-खरोश और सरकारका डटकर मुकाबला कर सकते हैं। अगर आप डट जायें तो आपकी हार कभी नहीं हो सकती।

आपका
मर्ररर...

अंग्रेजी (एस० एन० ९५६२) की फोटो--नकलसे।

७१. पत्र : दुनीचन्दको

आश्रम
साबरमती
२९ फरवरी, १९२८

प्रिय लाला दुनीचन्द,

लाला सूरजभानके जरिये मुझे आपका पत्र मिला। मैंने उन्हें कामपर लगा दिया है; इसकी उन्हें कतई आशा नहीं थी। मैंने उन्हें बता दिया है कि जबतक वह सच्चे और साधारण मजदूर नहीं बन जाते, आश्रम-जीवनके आदी नहीं हो सकते। परन्तु ऐसा लगता है कि उन्होंने इसे बड़ी सौम्यता और प्रसन्नताके साथ स्वीकार किया है।

अब रही आपके दानकी बात। मैं नहीं जानता कि आपने जानबूझकर पक्का बनियापन स्वीकारा है या नहीं। लेकिन शायद आपको मालूम नहीं था कि आपको अपने से भी ज्यादा पक्के बनियेसे पाला पड़ा है, जो स्वेच्छासे दरिद्रनारायणके एजेण्टके रूपमें कार्य कर रहा है। आप कहते हैं कि आपने अपने पुत्रके विवाह पर आश्रमको ५०० रु० दान देनेकी घोषणा की थी और आप इस निधिके एक भागको, यदि कानून की भाषामें कहा जाये तो गलत तरीकेसे उस कर्जेकी अदायगीमें मुजरा कर लेना चाहते हैं, जो आपने स्वेच्छासे श्रीयुत मणिलाल कोठारीको दिया था। किसी भी दान का उपयोग किसी कर्जको, चाहे वह कानूनी हो या नैतिक, उतारनेमें कैसे किया जा सकता है ? अखिल भारतीय चरखा संघको दान देनेके आपके वायदेका उस आश्रमसे

१. गांधीजी और तैयबजी एक दूसरेका अभिवादन इसी प्रकार किया करते थे। ।

२. आश्रमके लिए।