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७३. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

आश्रम
साबरमती
२९ फरवरी, १९२८

प्रिय मोतीलालजी,

जवाहरने मुझे आपके पत्रके' लिए तैयार कर रखा था। मुझे खेद है कि हमारी मुलाकातमें देरी हो गई है। परन्तु मुझे प्रसन्नता है कि आप वहां रुके हुए हैं। सम्भव है कि कोई ठोस परिणाम निकल आये । सारे राष्ट्रका व्यवस्थित ढंगसे अपमान किया जा रहा है और फिर भी हम लोग अपने आपको कितना हीन प्रदर्शित कर रहे हैं। परन्तु मैं समझता हूँ कि हमें गले पड़ी बातको निभाना ही है । आशा है कि बीस को समितिमें उपस्थिति पूरी रहेगी। हम जो कुश्ती लड़ रहे हैं वह बराबरकी नहीं है। एक ओर तो पूरे समय काम करनेवाले होशियार लोग हैं, जो एकमत होकर और पूरी तरह सोच-विचार कर काम करते हैं और दूसरी ओर थोड़े समय काम करनेवाले हम लोग हैं, जो कई काम एक साथ करते हैं और जितने लोग हैं,


१. अपने २४ फरवरीके पत्रमें मोतीलाल नेहरूने लिखा था..."मुझे खेद है कि २६ को मैं और जवाहर साबरमतीके लिए रवाना नहीं हो सकेंगे। उसी दिन जबकि मैंने आपको विभिन्न दलोंमें सहमति और असहमतिकी बातें सूचित करते हुए पत्र लिखा था, श्री जिन्नाने घोषणा कर दी कि यह कहना गलत है कि मुस्लिम लीग किसी भी बातपर रजामन्द हुई है, क्योंकि मुस्लिम लीगने सम्मेलन में रस्मो तौरपर अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा। उन्होंने आगे कहा कि इसमें कोई सन्देह नहीं है कि जो विचार मैंने व्यक्त किये हैं, वे मेरे निजी विचार है। परन्तु मैं यह महसूस करता हूँ कि चूँकि मेरी लीगने मुझे कोई निश्चित अधिकार नहीं दिया है इसलिए मैं अपने इन विचारोंसे बाध्य नहीं हूँ। इस तरह लम्बी बैठकों और लम्बे-चौड़े विवादोंका, जिनमें दस दिन लग गये, कोई अर्थ नहीं निकला। हमने यह भी देखा कि सम्मेलन में उपस्थिति दिन-ब-दिन कम होती गई और २१ को तो १४ ही लोग उपस्थित थे। मुस्लिम लीगकी कार्यकारिणीकी बैठक २६ को हो रही है। श्री जिन्नाने वायदा किया है। कि वह उससे अपने विचार मनवानेको भरसक कोशिश करेंगे। इन सब परिस्थितियों में मैंने सोचा कि सम्मेलनको आगे चलाना फिजूल है और यह सुझाव दिया कि एक उप-समिति बना दी जाये जो सारी समस्थापर विचार करे और जितनी जल्दी मुमकिन हो सम्मेलनको स्थगित बैठकको अपनी रिपोर्ट दे। इसपर सब रजामन्द हो गये और सम्मेलनको ८ मार्च तकके लिए स्थगित कर दिया गया। एक दम काम शुरू कर देनेके लिए २० सदस्योंकी समिति बना दी गई। हमें बहुत सारे काम करने बाकी है। परन्तु या तो हम २६ के बाद पहलेसे अच्छी प्रगति करने लगेंगे, या हमें सारी कोशिशें छोड़ देनी पड़ेंगी। मैं महसूस करता हूँ कि उपर्युक्त दोनों सम्भावनाओंमें से जबतक एक चीज नहीं हो जाती, यहाँ मेरी हाजिरी जरूरी हैं। जैसे ही मैं फारिंग हुआ, आपको पत्र लिखूँगा पा तार भेजूँगा।