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७५. पत्र : देवचन्द पारेखको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
बुधवार [ २९ फरवरी, १९२८]

माईश्री ५ देवचन्द भाई,

आपका पत्र मिला। मुझे एक रसायनशास्त्रीने बताया है कि यदि तेलको बर्फकी तरह जमा लें तो उसका एसिड निकल जाता है और केवल चरबी ही रह जाती है।

मोरबीकी खबर तो अच्छी आई है। यदि रेवाशंकर भाई मान जायें तो उन्हें ही प्रमुख बनवायें। वे हार जायें तो फिर किसी औरको चुन सकते हैं। यह सुझाव मुझे सबसे अच्छा लगता है।

भाई फूलचन्द वगैरा बारडोली गये हैं इसलिए अब आपकी मदद कौन कर रहा है ? मोरबीकी अन्त्यजशालाका क्या किया? मैं चाहता हूँ कि परिषदके प्रस्तावों पर अमल करवानेके लिए भी आप कुछ करें। चिलगोजाका अंग्रेजी नाम मुझे मालूम नहीं है। यदि यह मेवा मुझे मिला तो उसका नमूना आपको भेजूंगा । नाम भी खोजूँगा ।

बापूके वन्देमातरम्

गुजराती (जी० एन० ५६९५) की फोटो--नकलसे।

७६. पत्र : रेवाशंकर झवेरीको

बुधवार, २९ फरवरी, १९२८

आदरणीय रेवाशंकरभाई,

आपका पत्र मिला और तार भी। तार पाकर मैंने आपके पतेपर डाक्टर मुथुको कल ही पत्र लिख दिया था। वह आपने उनके पास पहुँचा दिया होगा। यदि उनकी जाँचके परिणामके सम्बन्धमें तार न किया हो या आज पत्र न लिखा हो तो तारसे सूचित करें। डाक्टर मुथुको भी मैंने सारा हाल खोलकर लिखनेके लिए लिखा है।

चि० जेकीका अदन जानेको जरा भी मन नहीं है। वह तो जैसा हम कहें वैसा करनेको तैयार है। अब सोचना तो यह है कि उसके विषयमें हमारा धर्म क्या है। मणिलालकी इच्छाके विरुद्ध क्या हम जेकीबहनको अपने पास रख सकते हैं ?

१.डाककी मुहरसे।

२.काठियावाड़ राजनैतिक परिषद ।