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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लॉर्ड सिन्हा

लॉर्ड सिन्हाके अवसानसे भारतकी भारी क्षति हुई है। लॉर्ड सिन्हा भारतके एक स्तम्भ थे । वे अपने बुद्धि-बलसे ऊँचेसे-ऊँचे पदपर पहुँच चुके थे। यह बात सच है कि असहयोगके युगमें उस पदका मूल्य अब अधिक नहीं रहा है; किन्तु उस पदको प्राप्त करने के लिए जिस शक्तिकी आवश्यकता थी उस शक्तिकी पूछ तो आज भी है। लॉर्ड सिन्हा उस पदको खोजने नहीं गये थे। बल्कि यह कहा जा सकता है कि वह पद उनको खोजते हुए आया था। किन्तु मैं यहाँ यह नहीं लिखना चाहता कि वे किन बड़े-बड़े पदोंपर रहे। सो तो पाठकोंने दूसरे अखबारोंमें पढ़ ही लिया होगा। मैं यहाँ उनके साथ अपने परिचयके सम्बन्ध में कुछ कहना चाहता हूँ ।

लॉर्ड सिन्हाको पहली बार मैंने १९१५ के कांग्रेसके अधिवेशन में देखा था । कांग्रेस अधिवेशनका मेरा यह दूसरी बारका अनुभव था। मुझे इस अधिवेशन में ही उनकी प्रतिभाका परिचय मिला था। उनके भाषणकी विद्वत्ता सभीको भाई थी। उन्होंने साम्राज्यकी जो आलोचना की थी, वह गम्भीर थी । कांग्रेसकी कार्य समितिमें उनके कार्य संचालनको सभीने सराहा था।

हम सब उनकी इस प्रतिभाका अनुकरण नहीं कर सकते; किन्तु हम उनके जिस गुणका अनुकरण कर सकते हैं उस गुणकी झांकी मुझे उनके सम्मानमें किये गये एक समारोहमें मिली थी । वह गुण था उनकी विनम्रता ।

किन्तु उनकी इस विनम्रताका और अधिक अच्छा दर्शन मुझे उस समय हुआ जब श्री देशबन्धु दासके स्मारकके लिए धन संग्रह किया जाना था। हम सबको यह लगता था कि यदि इस कोषके संग्रहकी अपीलमें उनका नाम रहे तो अच्छा होगा। सभी पक्षोंके लोगोंको ऐसा लगा कि यदि उनका नाम मिल जाये तो यह कोष अधिक अच्छी तरहसे इकट्ठा हो सकेगा और सभी पक्षोंके लोग उसमें सहज रूपमें भाग लेंगे। उनके यहाँ जो लोग गये थे उनमें मैं भी था। उनका स्वास्थ्य उस समय बहुत अच्छा न था; किन्तु जरूरत पड़नेपर वे लोगोंसे मिलते थे। उन्होंने अपना नाम बड़ी खुशीसे दिया था और जितनी मदद दी जा सके उतनी मदद देनेका वादा भी किया था। इस प्रसंगमें उनकी नम्रता, शिष्टता और उनके गौरवका मुझे बहुत अच्छा अनुभव हुआ और मैंने यह देखा कि यदि यह गुण हमारे सब बड़े बूढ़ोंमें हो तो भारतका गौरव बहुत बढ़ जाये। मैंने देखा था कि वे सम्मानके भूखे न थे; वे दूसरोंका सम्मान करनेके लिए सदा तैयार रहते थे। जिसको सम्मान नहीं चाहिए वही सम्मानके योग्य होता है। जो अधिकारको ठुकराता है अधिकार उसीसे चिपटता है। लॉर्ड सिन्हाकी स्थिति ऐसी अच्छी थी । ईश्वर करे उनकी विनय और नम्रता हम सबमें आये।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, ११-३-१९२८