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११४. अन्त्यजोंकी हुण्डी कौन सकारेगा ?

यह हुण्डी जल्दी प्रकाशित की जानी थी। किन्तु बीमारोंका कारबार बीमारों जैसा ही चलता है। इस नियमके अनुसार इस हुण्डीको प्रकाशित करनेमें ढिलाई हुई। इसलिए जो लोग इस हुण्डीको सकारनेके लिए तैयार हों वे अपनी रकमें ब्याज सहित भाई मूलचन्द पारेखको भेज देंगे ऐसी उम्मीद है। सभी हिन्दू अन्त्यज सेवा पसन्द नहीं करते। इसलिए जो लोग अस्पृश्यताको हिन्दू-धर्मके लिए व्याधि रूप समझते हों इसमें सहायता देना उनका दुहरा कर्त्तव्य है। मुझे आशा है कि वे इस बातकी नहीं भूलेंगे।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ११-३-१९२८

११५. पत्र : जेन हॉवर्डको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
१२ मार्च, १९२८

प्रिय बहन,

आपका लम्बा पत्र पाकर प्रसन्नता हुई। आप श्रीमती गांधीके बारेमें और उस दुर्भाग्यपूर्ण घटनाके बारेमें, जिसका मैंने 'आत्मकथा' के परिच्छेदोंमें जिक्र किया है, जो कहती हैं, उसके प्रत्येक शब्दका मैं समर्थन करता हूँ। निस्सन्देह आपने यह कल्पना नहीं की होगी कि मैं इस क्रूरताका स्मरण करनेमें गर्व अनुभव करता हूँ या कि आज भी मैं कुछ इसी तरहकी क्रूरता कर सकता हूँ। परन्तु मैंने यह सोचा था कि यदि लोग मुझे शरीफ और शान्तिप्रिय आदमी समझते हैं, तो उन्हें यह भी जानना चाहिए कि एक ऐसा समय था जब मैं सचमुच जानवर था, यद्यपि इसके साथ मैं स्नेहशील पति होनेका दावा करता था। एक बार एक मित्रने, मुझे एक पवित्र गाय और क्रूर चीतेका मिश्रण बताया था--वह निराधार नहीं था ।

यदि आपने अपने सुन्दर पत्रको जला दिया होता, जैसा कि आपने एक बार जलानेके लिए सोचा भी था, तो यह बहुत खेदजनक बात होती । निश्चय ही आप मुझे अशिष्ट और दुविनीत नहीं लगीं हैं अपितु अत्यन्त स्वाभाविक और इस कारण प्रिय लगी हैं। निस्सन्देह मैं यह अवश्य चाहता हूँ कि मैं आपके भाईके और अधिक

१. देखिए आत्मकथा भाग ४ अध्याय १० ।