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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निकट सम्पर्क में आया होता । परन्तु मैं उन्हें प्यार करने और उनका वास्तविक मूल्य समझनेकी हद तक तो जानता ही था ।

हृदयसे आपका,

कुमारी जेन हॉवर्ड
'रोजमेरी'
५० पैण्डोरा रोड
मलवनं, जोहानिसबर्ग
(ट्रान्सवाल, द० आफ्रिका)

अंग्रेजी (एस० एन० ११९६७) की फोटो--नकलसे ।

११६. पत्र : बी० डब्ल्यू० टकरको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
१२ मार्च, १९२८

प्रिय मित्र,

आप जिस तरह मेरे विचारोंका विरोध कर रहे हैं, उसे मैं पसन्द करता हूँ। हम दोनोंके बीचके मतभेदको मैं उड़ीसा में ही समझ गया था। मेरे लिये वैयक्तिक और सामाजिक स्थितिमें कोई अन्तर नहीं है। जिस किस्मके समझौतेका आपने सुझाव दिया है उसकी भी काफी गुंजाइश है और इसका सीधा-सा कारण यह है कि मैं व्यक्तिगत आचरणमें भी अपने आदर्शोंसे सदा समझौता करके चलता हूँ। इसलिए नहीं कि मैं ऐसा करना पसन्द करता हूँ, बल्कि इसलिए कि समझौता अनिवार्य है। इसीलिए मैंने सामाजिक और राजनीतिक विषयोंमें जिसपर मेरा विश्वास रहा है उस आदर्शके पूरी तरहसे निर्वाह करनेपर कभी जोर नहीं डाला। परन्तु ऐसे प्रसंग तो आते ही रहते हैं जब व्यक्तिको यह कहना ही पड़ता है कि इस हदतक समझौता हो सकता है, इससे आगे नहीं और इस विभाजक रेखाका निश्चय ही हर बार गुण-दोषके आधार पर करना होता है। सामान्यतः जहाँ किसी आन्दोलनका अन्तिम परिणाम बुरा रहा है, वहां मैंने समझौते के आधारपर किये गये सहयोगको अत्यन्त अभीष्ट माना है। यदि कि मैं इस वक्त अपने आपको कुछ राजनीतिक आन्दोलनोंसे दूर रखता प्रतीत होता हूँ, तो इसका कारण मेरा यह विश्वास है कि उन आन्दोलनोंका रूझान स्वराज्यकी दिशा में प्रगतिकी ओर नहीं, अपितु उसमें विलम्ब कराने की ओर है। यह हो सकता है कि मैंने अपनी धारणा बनानेमें गलती की हो । यदि ऐसा है तो यह मानव सुलभ है; मैंने यह दावा कभी नहीं किया है कि मुझसे चूक नहीं हो सकती। आप देखेंगे कि अभी हालमें 'आत्मकथा' के परिच्छेदमें, जिसमें पिछले