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फिर वही चर्चा

जिन कतैयोंकी और साथ-साथ जिन धुनियों तथा बुनकरोंकी मदद कर रहा था उन सबकी गणना करनेकी कोशिश की गई थी। साथकी तालिकामें उक्त आँकड़े दिये जाते हैं।' उन्हें देखने पर मालूम होगा कि न तो प्रान्तोंकी संस्था जिन्होंने अपने आँकड़े नहीं भेजे हैं और न वे ही जिन्होंने आँकड़े भेजे हैं, अ० भा० च० संघकी सारी महँगें पूरी कर सकी हैं। इसलिए साथके आँकड़े हर हालतमें सही आँकड़ोंसे कम हीं होंगे, अधिक नहीं हो सकते; फिर भी इन आंकड़ोंसे जो प्रगति सूचित होती है वह ५०,००० कतैयों और १,५०० गाँवोंसे कहीं अधिककी प्रगति है। किन्तु इससे तो उस आन्दोलनकी सम्भावनाओंके प्रारम्भका एक अनुमान भर लगता है, जिसे समझदार लोगोंका ठोस समर्थन प्राप्त होना है। अगर केवल खादीकी माँगका पक्का भरोसा हो जाये तो खादीके उत्पादनकी बेहद गुंजाइश है।

[अंग्रेजी]
यंग इंडिया,१५-३-१९२८

१२३. फिर वही चर्चा

'आत्मकथा' का वह अध्याय, जिसमें मैंने विगत युद्धमें अपने हिस्सा लेनेका उल्लेख किया है, अभी तक मेरे मित्रों और आलोचकोंके मनकी उलझनका कारण बना हुआ है। यह एक पत्र और है :

निस्सन्देह जिसने मुझे युद्धमें भाग लेनेके लिए प्रेरित किया, वह एक मिश्रित उद्देश्य था। मुझे दो बातें याद आती हैं। यद्यपि व्यक्तिगत रूपसे मैं युद्धका विरोधी था, तो भी मेरी स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं कारगर ढंगसे अहिंसात्मक प्रतिरोध कर सकता । अहिंसात्मक प्रतिरोध तभी किया जा सकता है जब पहले कोई वास्तविक निःस्वार्थ सेवा की जा चुकी हो या हार्दिक प्रेमका कोई प्रदर्शन हो चुका हो । उदाहरणके लिए मैं किसी जंगली मनुष्यको पशु बलि देनेसे तबतक रोकनेकी स्थितिमें नहीं होऊँगा जबतक कि वह मेरे किसी स्नेहपूर्ण काम या दूसरी किसी वजहसे मुझे अपना मित्र न समझने लगे। मैं संसारमें होते रहनेवाले अनेक कुकर्मोका काजी नहीं बन सकता । चूँकि मैं स्वयं अपूर्ण हूँ और दूसरोंकी सहनशीलता और उदारताकी अपेक्षा रखता हूँ, इसलिए जबतक मुझे सफल प्रतिवाद करनेका अवसर न मिले या मैं ऐसा अवसर न जुटा लूं, मैं संसारकी त्रुटियोंको सहन करता रहूँगा। मैंने अनुभव किया कि यदि मैं पर्याप्त

१. यहीं नहीं दिये जा रहे हैं।

२. यह नहीं दिया गया है। आत्मकथा भाग ४के ३८वें और ३९वें अध्यायका सन्दर्भ देते हुए पत्र-लेखकने पूछा था : आपको युद्ध में सम्मिलित होनेकी प्रेरणा कहाँसे मिली ? कुछ लाभ होनेकी आशामें युद्ध में सम्मिलित होना क्या ठीक था? मुझे नहीं मालूम कि गीताके इस उपदेशके साथ इसकी संगति कैसे हो सकती है, जहां कहा गया है कि हमें फलको कामनाको सामने रखकर कभी कार्य नहीं करना चाहिए।