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१२४. पत्र : नीलरतन सरकारको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
१६ मार्च,१९२८

प्रिय नीलरतन सरकार,

मैंने आश्रम के साथ एक चर्मालयकी स्थापना की है, जहाँ मैं शक्ति-चालित मशीनें काममें नहीं ला रहा हूँ। ऐसा इरादा है कि एक आदर्श चर्मालय बनाया जाये और उसके जरिये ग्रामीण लोगोंकी सेवा की जाये। क्या आप या आपके बड़े संस्थान का कोई व्यक्ति चर्म-शोधन सम्बन्धी ऐसा साहित्य उपलब्ध करके मेरी सहायता कर सकता है जो आश्रममें शुरू किये गये इस छोटे-से उद्योगके लिए उपयोगी हो और जिससे मुझे इस काममें कुछ सुझाव भी मिल सकें ?

यदि आपने स्वयं यह पत्र उन्हें दिखानेकी बात न सोची हो, तो भी मैं आपसे कहूँगा कि आप यह पत्र चर्म-शोधनके कारखाने में काम करनेवाले श्री दासको दिखा दें और उनसे मेरे लिये इसी तरहकी सहायता प्राप्त करें ।

आश्रममें हम जितने भी लोग हैं, उनमें से किसीको चर्मालय चलानेका कोई ज्ञान नहीं है। मैं यह चाहता हूँ कि सब कुछ जैसे कि मरे हुए पशुओंकी खाल उतारना, पशुके मृत शरीरसे निकालनेके साथ ही खालकी सार-संभाल कैसे की जाये शुरूसे सीखा जाये ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० ११३९४) की फोटो--नकलसे ।

१२५. पत्र : मधुसूदन दासको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
१६ मार्च, १९२८

प्रिय मित्र,

बड़े सोच-विचार और परेशानीके बाद मैंने आश्रममें एक छोटा-सा चर्मालय स्थापित किया है। इसमें शक्ति-चालित मशीनें नहीं है। इस विषयमें प्रशिक्षित कोई व्यक्ति भी हमारे पास नहीं है; एक ऐसे सज्जन जरूर हैं, जिन्होंने अमेरिकामें चर्म- शोधनका उलटा-सीधा अनुभव प्राप्त किया है और जो मेरी ही तरह के एक सनकी व्यक्ति हैं । यद्यपि मैं आपकी परेशानियोंमें हिस्सा नहीं बँटा सका, और आपके महान्