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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

राष्ट्रीय अध्यवसायके सम्बन्धमें आपके कन्धोंका बोझ हलका नहीं कर सका फिर भी आश्रममें इस छोटे-से चर्मालयकी स्थापना आंशिक रूपसे आपकी प्रेरणासे ही हुई है। क्या आप कृपया इस विषयसे सम्बन्धित साहित्यकी सूची, चर्म-शोधनपर निर्देशन- पुस्तिका या इस तरहकी कोई दूसरी सामग्री भेजकर मेरी सहायता कर सकते हैं ? यदि आपके ध्यानमें अंग्रेजीमें इस तरहकी कोई सामग्री न हो तो क्या आप अपने व्यापक और विविध अनुभवके आधार पर ऐसा कुछ लिख भेजेंगे, जो प्रचारके लिए उपयोगी हो; फिर चाहे उसमें कुछ संकेत मात्र ही क्यों न हो ? चर्मालयमें क्या हो रहा है? जिम्मेदार अफसर कौन हैं ? मैं यह भी कह दूं कि मेरा विचार आश्रम-चर्मालयको गाँवोंके लिए आदर्श बना देनेका है, जिससे ग्रामीण लोग अपने मरे हुए पशुओंका प्रबन्ध करके खालका इस्तेमाल स्वयं कर सकें। मैंने बहुत-से लोगोंसे मरे हुए पशुओंकी खाल उतारनेका तरीका जानना चाहा, परन्तु इसमें मुझे सफलता नहीं मिली। चर्म-शोधनके बारेमें जरा-सी भी जानकारी रखनेवाला हर आदमी गांवके चर्म-शोधकके पाससे चमड़ा ले लेनेके बाद उसके बारेमें कुछ-न-कुछ शिकायत करता है। परन्तु किसीने अभी तक मुझे यह नहीं बताया है कि यदि मैं मरे हुए पशुको ले लूं तो खालको मृत शरीरसे मितव्ययिता और स्वास्थ्य विज्ञानका ध्यान रखते हुए किस तरह अलग करूँ और दूसरी वस्तुओं जैसे हड्डियों, आँतों वगैरहका खादके कामके लिए उपयोग कैसे करूँ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत मधुसूदन दास
मिशन रोड
कटक

अंग्रेजी (एस० एन० ११३९५) की फोटो--नकलसे ।