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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कपड़ा जो अब तक भारतका मुख्य व्यवसाय था अभी हाल ६७ फी सदी चुंगी लगानेसे, और खासकर अच्छी कलोंकी बदौलत, न सिर्फ इस देशसे जाता ही रहा है, बल्कि हम अपना सूती कपड़ा अपने एशियाके साम्राज्यकी जरूरतका कुछ अंश पूरा करनेके लिए वहां भेजते भी हैं। इस तरह हिन्दुस्तानको औद्योगिक देश न रखकर कृषि-प्रधान देश बना दिया गया है। इसी किस्मका एच० एच० विल्सनका प्रामाणिक कथन सुनिए :

भारतवर्ष जिस देशके अधीन हो गया है, उसके द्वारा भारतके प्रति किये गए अन्यायका यह एक और दुःखद उदाहरण है। गवाही में (सन् १८१३ में) यह कहा गया था कि उस वक्त भी हिन्दुस्तान के सूती और रेशमी कपड़े विलायत के बाजारमें इंग्लैंडमें बनाये कपड़ोंकी अपेक्षा ५० से ६० प्रतिशत कम दामपर भी मुनाफेमें बिकते थे। इसलिए कपड़ेके दामपर ७० से ८० प्रतिशत चुंगी लगाकर या उसका पहनना जुर्म करार देकर इंग्लैंडके कपड़ेकी रक्षा करना जरूरी हो गया। अगर यह बात न होती, अगर ऐसी प्रतिबन्धात्मक चुंगियाँ या कानून न होते तो पेसली और मेन्चेस्टरकी मिलें शुरूमें ही बन्द हो जातीं; और उन्हें वाष्पके बलपर भी शायद ही फिरसे चलाया जा सकता। वे हिन्दुस्तानी उद्योगकी बलि चढ़ा करके बनाई गई थीं। अगर हिन्दुस्तान स्वतन्त्र होता तो वह इसका प्रतिकार करता । ब्रिटिश मालपर प्रतिबन्धात्मक चुंगी लगाकर अपने इस उत्पादक उद्योगको नष्ट होनेसे बचाता। उसे आत्मरक्षाका यह उपाय काममें लानेकी आज्ञा नहीं थी। वह विदेशी सत्ताकी दयापर निर्भर था। ब्रिटिश माल भारतपर बिना कोई चुंगी दिये हो जबरदस्ती लाद दिया गया और विदेशी उत्पादकोंने ऐसे प्रतिद्वन्द्वीको दबाये रखने और जिसके साथ वे बराबरीके मुकाबलेमें टिक नहीं सकते थे, अन्तमें गला घोटकर मार डालनेके लिए राजनीतिक अन्यायका सहारा लिया ।

टॉमस मनरोके कथनानुसार “कम्पनीके नौकर मुख्य-मुख्य जुलाहोंको एक जगह पर इकट्ठा करके उनपर तबतक पहरा रखते थे जबतक कि वे केवल एकमात्र कम्पनीके ही हाथों कपड़ा बेचनेका ठेका नहीं ले लेते थे।"

लेखक आगे कहता है:

एक बार अगर किसी जुलाहेने पेशगी ले ली तो फिर वह शायद ही कभी उस जिम्मेदारी से बच सकता था। अगर उससे देर हो जाये तो उससे जल्दी माल वसूल करनेके लिए उसके घरपर प्यादा बैठा दिया जाता था। उसपर अदालतोंमें मुकदमा भी चलाया जा सकता था। प्यादा बैठानेके मानी होते थे एक आनेका रोजाना दण्ड और प्यादेके हाथमें खजूरकी छड़ी भी दी जाती थी, जो अकसर इस्तेमालमें आती थी। कभी-कभी जुलाहोंपर जुर्माना कर दिया जाता था, जिसे वसूल करने के लिए उनके पीतलके बर्तन जब्त कर लिये