पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/२९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२९१. पत्र : शंकरन्को

आश्रम
साबरमती
२१ अप्रैल, १९२८

प्रिय शंकरन्,

तुम्हारा पत्र मिला । तो अब तुम एक कांग्रेस कमेटीके अध्यक्ष हो । यह बहुत ही अच्छी बात है। और मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि गिरधारीलाल खादीमें इतनी ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है।

मैं तुम्हारा पत्र श्रीयुत विट्ठलदास जेराजाणीको उचित काईवाईके लिए भेज रहा हूँ ।

तुम्हारी इस बातसे मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि खादी संस्थाओंमें किसी प्रकारकी उदासीनता और कभी धोखा-धड़ीकी बात होनी ही नहीं चाहिए। मैं विट्ठलदाससे पूछ रहा हूँ कि क्या शर्तें रखी जा सकती हैं ?

यदि तुम प्रथम कारणमें विश्वास रखते हो तो उसके सम्बन्ध में तर्क करना व्यर्थं है। प्रत्येक बातको तर्ककी कसौटीपर कसना प्रशंसनीय और उचित है, किन्तु हमें यह जानते हुए कि आदमी अपूर्ण है विनम्रतापूर्वक यह मी मान लेना चाहिए कि कुछ बातें तर्कंसे परे भी हो सकती हैं।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि तुम्हारे सेवाकार्यंका दायरा चारों तरफ फैल रहा है। मुझे इस बातकी कोई आशंका नहीं है कि तुम्हें जो भी काम दिया जायेगा, उसमें तुम ढील करोगे ।

यूरोपके दौरेके बारेमें मैं कुछ भी तय नहीं कर पाया हूँ ।

हृदयसे तुम्हारा

अंग्रेजी (एस० एन० १३२००) की माइक्रोफिल्मसे ।