पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/२९७

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२९४. पत्र: जूलिया इजब्रूकरको

[१]

[ २२ अप्रैल, १९२८से पूर्व ]

[२]

प्रिय बहन,

आपका गत ७ तारीखका पत्र मिला । यदि मैं यूरोप गया हो और मुझे समय मिल सका और मेरा स्वास्थ्य ठीक रहा तो मैं सहर्ष सम्मेलनमें शरीक होऊँगा ।

अंग्रेजी (एस० एन० १४९४४) की फोटो-नकलसे ।

२९५. दफ्तरके बाबू बनाम कारीगर

श्री रणछोड़लाल अमृतलालने दफ्तरके बाबुओंके बीमाके बारेमें मेरे पास निम्न- लिखित योजना भेजी है :[३]

इस योजनामें जो भाग बीमाके सम्बन्धमें है उसे मैं बहुत नहीं समझता। इसलिए अगर किसी किस्मका बीमा क्लर्कोंका हित समझकर कराया जाये, तो मैं यह मान लेता हूँ कि वह इस बीमायुगमें अच्छा ही होगा। योजनामें बतलाई बातोंकी उपयोगी टीका तो कोई बीमाशास्त्री ही कर सकता है और मैं मान लेता हूँ कि श्रीयुत रणछोड़लालने किसी अच्छे जानकारकी मदद ली होगी। इस बारेमें दो मत हो ही नहीं सकते कि मिल-मालिकों और दूसरी पेढ़ियोंको अपने यहां काम करनेवाले सैकड़ों क्लकोंके हितमें, उन्हें कुटुम्बी-सा समझकर दिलचस्पी लेनी चाहिए। आज तक यह सम्बन्ध महज मालिक और नौकर जैसा ही था। मैंने अपने दौरोंमें सब जगह देखा है कि उसमें कौटुम्बिक भावना बहुत कम ही पैदा हुई है। इसलिए इस योजनाको स्वागत करने योग्य समझता हूँ। बीमाके सिवाय और दूसरी जो वस्तुएँ बतलाई हैं, वे भी शुभ हेतुकी सूचक हैं।

तीसरे अनुच्छेदमें डाक्टरी मदद मुफ्त देनेकी जो बात लिखी है, वह मेरी दृष्टिमें मुफ्तके बदले सस्ती, सच्ची और तात्कालिक होनी चाहिए। क्योंकि मुफ्त मददसे यह सम्भव है कि बेचारे क्लकोंकी स्थिति पराधीनकी-सी हो जाये । फिर, जहाँ मुफ्त मदद मिलती है, वहाँ लापरवाही या मददका दुरुपयोग भी हो सकता है । इस जोखिमसे भी उनको बचानेकी जरूरत है। क्लर्कों या कारीगरोंका रोग उनका कम वेतन और उनकी स्थितिकी ओर सामान्य लापरवाही है। वर्तमान योजनामें वेतनकी

  1. सचिव, अन्तर धर्म शान्ति सम्मेलन ( इंटर रिलिजन्स कांफ्रेन्स फॉर पीस), हेग।
  2. यह पत्र निश्चित रूपसे २२ अप्रैल जिस तारीखको गांधीजीने यूरोप जानेके सम्बन्ध में फैसला करनेसे पहले लिखा गया था। देखिए “पत्र : सी० एफ० एण्ड्रथजको ”, २२-४-१९२८ ।
  3. यहाँ नहीं दी जा रही है।