पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसे अपना पूराका पूरा समय न दे सकूँ, कमसे-कम उसका अधिकसे-अधिक भाग उसे देना चाहिए ।

मेरे मनमें था कि अगर यूरोप न गया तो बर्मा जाऊँगा। पर अब मैं महसूस करता हूँ कि मैं बर्मा भी नहीं जाना चाहता हूँ और यदि बर्माको मेरी आवश्यकता नहीं हुई, तो मैं गर्मियाँ आश्रममें ही बिताऊँगा ।

गर्मीसे मुझे कोई परेशानी नहीं होती है। मेरा स्वास्थ्य ठीक चल रहा है। और फिर यदि मैं यहाँ रहा तो निस्सन्देह अन्य बहुतसे काम कर सकूँगा । अतः अन्ततः मैं सोचता हूँ कि मुझे नहीं जाना चाहिए। परन्तु अस्थाई रूपसे मैं यह निश्चय कर सकता हूँ कि अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो मैं अगले साल यूरोप जाऊँगा । अभीसे पूरी तैयारी और प्रबन्ध करनेके लिए मुझे काफी समय मिल जायेगा, ताकि मैं बिना किसी दिक्कतके जा सकूँ और तब यदि मैं ऐसा कर सका और कोई अड़चन न हुई तो समयकी बचत करनेकी दृष्टिसे अमेरिका भी हो आऊँगा ।

अम्बालालसे मेरी लम्बी बातचीत हुई थी। उनका कहना है कि उन्होंने अपना चन्दा भेज दिया है और इससे आगे वे तबतक नहीं बढ़ सकते जबतक कि सही पक्का चिट्ठा प्रकाशित नहीं हो जाता। हिसाब-किताब रखने के तरीकेसे वे असन्तुष्ट हैं और गुजराती समिति नियुक्त करनेके लिए उत्सुक प्रतीत होते हैं, क्योंकि उन्होंने कहा है कि अधिक पैसा गुजरातियोंसे ही मिला है। जहाँ तक मैं समझ सका हूँ मैं उन्हें उनके निश्चयसे विचलित नहीं कर सका हूँ। परन्तु उनका यह कहना है कि अपने इस फैसलेको करते समय उन्होंने अपनी सहज प्रेरणाके बजाय दूसरे दाताओंकी बातपर अधिक ध्यान दिया है।

मरीचिने मुझे तुम्हारे दाँतोंके बारेमें या यों कहो कि तुम्हारे दाँत रहित हो जानेके बारेमें बताया है। दाँतोंका चला जाना कोई बहुत बड़ी हानि नहीं है और जब किसीके दाँत स्वास्थ्यप्रद होनेके बजाय बीमारीका कारण हों तब यह निश्चय ही एक लाभ है।

इस बातको याद रखो कि तुम्हें श्रद्धानन्द लेखमाला समाप्त करनी है। तुम्हें ग्रेगकी पुस्तकपर कुछ लिखना चाहिए।

आशा है अब गुरुदेव काफी बेहतर होंगे ।

अंग्रेजी (एस० एन० १४९५८) की फोटो-नकलसे ।