पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३०५

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३०७. पत्र : श्रीनाथ सिंहको

वैशाख शुक्ल ४ [२३ अप्रैल, १९२८]

[१]

श्रीनाथ सिंहजी,

आपका खत मीला है। बिड़ला बालकोंसे मेरा परिचय है इसे उनको मैंनेसंदेश भेज दीया । यदि सब अखबार जिनके तंत्री महाशयोंको और जिनको मैं न जानुं, वे सब मांगे तो और मैं भेजनेकी कोशीश करूं तो मेरा सब समय उसीमें चला जाय ।

आपका,
मोहनदास

श्रीनाथ सिंहजी,

सम्पादक, बालसखा
इंडियन प्रेस लिमिटेड

इलाहाबाद

सी० डब्ल्यू० २९७३ से ।

सौजन्य : श्रीनाथ सिंह

३०८. पत्र : कुँवरजी खेतसी पारेखको

मौनवार [ २३ अप्रैल, १९२८]

[२]

चि० कुँवरजी,

तुम्हारा पत्र मिला । बालराका काम बन्द हो जाये तो क्या करना होगा इसका विचार जयसुखलालके साथ करना । तुम्हारे अन्तिम अनुच्छेदका उद्देश्य समझमें नहीं आया । किन्तु इस समय तुम्हारे सामने ज्यादा वेतनवाली नौकरी लेनेका प्रश्न हो और तुम ऐसा करना चाहते हो तो मैं तुमसे खादी कार्यमें लगे रहनेका आग्रह नहीं करूँगा। मैं चाहता हूँ कि यदि तुम इस कार्यमें रहो तो रामदासकी तरह परमार्थके विचारसे पैसेका लोभ छोड़कर रहो। किसीको ऐसा नहीं लगना चाहिए कि उसके साथ जबरदस्ती की जा रही है। मुझे तो तुम्हारा काम पसन्द है ही। मैं तुम्हें आश्रममें ही रखना तो चाहता हूँ । किन्तु जो ब्रह्मचर्यका पालन करें उन्हींको आश्रम में ३६-१८

  1. पत्रपर २४-४-१९२८ की डाककी मुहर पड़ी है।
  2. डाककी मुहरसे।