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मेरा सबसे अच्छा सहयोगी चला गया

या मशीनको कभी हाथमें भी नहीं लिया था, फिर भी इंजन घरमें, कलोंके बीच तथा कम्पोजिटरीके काममें सभी जगह उन्होंने अत्यन्त कुशलता दिखलाई। 'इंडियन ओपिनियन' के गुजराती अंशका सम्पादन करना भी उनके लिए वैसा ही सहज काम था। चूंकि फीनिक्स आश्रममें घरेलू खेतीका काम भी शामिल था, इसलिए वे कुशल किसान भी बन गये। मेरा खयाल है कि आश्रममें उनका बगीचा सबसे अच्छा बगीचा था। यह भी उल्लेखनीय है कि अहमदाबादसे 'यंग इंडिया' का जो पहला अंक निकला, उसमें भी गाढ़े मौकेपर उनके हाथकी कारीगरीकी छाप है।

पहले उनका शरीर बड़ा हृष्ट-पृष्ट था किन्तु जिस कामके लिए उन्होंने अपनेको समर्पित किया था, उसे आगे बढ़ानेमें उन्होंने उस शरीरको गला दिया था। उन्होंने बड़ी सावधानीसे मेरे आध्यात्मिक जीवनका अध्ययन और अनुकरण किया था। जब मैंने सत्यकी खोजमें रत विवाहित स्त्री-पुरुषोंके लिए भी ब्रह्मचर्य ही को जीवनका- नियम बताते हुए अपना सिद्धान्त अपने सहयोगियोंके सामने पेश किया था, तब उन्होंने ही पहले पहल उसका सौन्दर्य तथा उसके पालनकी आवश्यकता समझी; और उसके लिए जैसा कि मैं जानता हूँ, उन्हें बड़ा कठोर प्रयत्न करना पड़ा था। उन्होंने इसे सफल करके दिखलाया। इसके लिए उन्होंने अपनी धर्मपत्नीको भी धैर्यपूर्वक समझा बुझाकर राजी किया था, उसपर जबरन् अपने विचार थोप कर नहीं । जब सत्याग्रह प्रारम्भ हुआ, तब वे सबसे आगे थे। उन्होंने ही मुझे वह नाम सुझाया जो मैं दक्षिण आफ्रिकाके संघर्षको पूरी तरह अभिव्यक्त करनेके लिए ढूंढ़ रहा था और इससे पहले दूसरा कोई अच्छा शब्द न मिल सकनेके कारण मैंने लाचार होकर उसे 'निष्क्रिय प्रतिरोध ' का नाम दिया था; यह नाम अत्यन्त अपर्याप्त होनेके साथ-साथ भ्रमोत्पादक भी था । क्या ही अच्छा होता अगर आज मेरे पास उनका वह अत्यन्त सुन्दर पत्र होता जो उन्होंने उस समय लिखा था, जिसमें बतलाया था कि इस संघर्षको किन कारणोंसे सदाग्रह कहना चाहिए। इसी सदाग्रहको बदल कर मैंने सत्याग्रह' शब्द बनाया। उन्होंने पत्रमें इस संघर्षके सभी सिद्धान्तों पर एक-एक करके विचार किया था और उसे पढ़ते हुए अन्तमें पाठकको चुपचाप उनके चुने हुए इसी नामपर आना पड़ता था। मुझे याद है कि वह पत्र अत्यन्त ही छोटा और विषयसे सुसम्बद्ध था, उनके सभी पत्र सदा ऐसे ही होते थे। संघर्षके समय वे कामसे थके नहीं, किसी कामको टाला नहीं। वे अपनी निर्भीकतासे अपने आसपासके सभी लोगोंके दिल, उत्साह और आशासे भर देते थे । जब कि सब लोग जेल गये, जब फीनिक्समें मेरे कहनेपर जेल जाना ही मानो इनाम जीतना था, उस समय भी जेल जाने से भी ज्यादा कठिन काम सँभालनेके लिए वे बाहर बने रहे। स्त्रियोंके दलमें शामिल होनेके लिए उन्होंने अपनी पत्नीको भेज दिया था। हमारे हिन्दुस्तान लौटनेपर भी उन्हींकी बदौलत इतने संयम नियमकी बुनियाद पर बना यह आश्रम स्थापित हो सका । यहाँ उन्हें नया और अधिक मुश्किल काम १. देखिए खण्ड २९, पृष्ठ ९९ / Gandhi Heritage Portal