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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करना पड़ा। मगर उन्होंने अपनेको उसके लायक साबित किया। उनके लिए अस्पृश्यता बहुत कठिन परीक्षा थी। सिर्फ एक पल-भरके लिए ऐसा जान पड़ा, मानो उनका दिल डोल गया हो । मगर यह तो केवल एक क्षण-भरकी ही बात थी । उन्होंने समझ लिया था कि प्रेमकी कोई सीमा नहीं हो सकती। उन्होंने और नहीं तो महज इसीलिए कि अछूतोंकी इस दशाके लिए ऊँची जातिवाले जिम्मेदार हैं, अस्पृश्यताके कलंकको मिटाना आवश्यक माना ।

आश्रमके औद्योगिक विभागका काम फीनिक्सके कार्यकलापों जैसा नहीं था। यहाँ हमें बुनना, कातना, घुनना और ओटना सीखना होता था। यहां फिर मैंने मगनलालकी ओर देखा । यद्यपि कल्पना मेरी थी किन्तु उसे कार्यरूपमें परिणत करनेवाले हाथ तो उनके थे। उन्होंने बुनना और कपाससे खादी बनाने तककी और दूसरी सभी प्रक्रियाएँ सीखीं। वे तो जन्मसे ही कारीगर थे ।

जब आश्रममें दूधका काम शुरू हुआ तबसे वे इस काममें उत्साहसे लग गये, दूध सम्बन्धी साहित्य पढ़ा और आश्रमकी सभी गायोंका नामकरण किया और आश्रमके सभी चौपायोंसे मित्रता कर ली।

जब आश्रममें चर्मालय शुरू किया गया तब भी वे वैसी ही हिम्मतसे काममें जुट गये। जरा दम लेनेकी फुरसत मिलते ही वे चमड़ेकी कमाईके सिद्धान्त भी सीखनेका इरादा रखते थे। राजकोटके हाईस्कूलमें प्राप्त की शिक्षाके अलावा और जो बहुतेरी चीजें वे इतनी अच्छी तरह जानते थे, सब उन्होंने स्वानुभवकी कठिन पाठशालामें सीखी थीं। उन्होंने देहाती बढ़ई, देहाती बुनकर, किसान, चरवाहों और ऐसे ही मामूली लोगोंसे काम सीखा था ।

वे चरखा संघके तकनीकी विभागके निदेशक थे। श्रीयुत वल्लभभाईने हालकी बाढ़के समयमें उन्हें विट्ठलपुरकी नई बस्ती बनानेका काम सौंपा था ।

वे अनुकरणीय पिता थे। उन्होंने अपने बच्चोंको, दो लड़कियों और एक लड़केको, जो अब तक अविवाहित हैं, ऐसी शिक्षा दी कि वे देशके लिए जीवन समर्पित करने योग्य बन जायें। उनका पुत्र केशव यन्त्र-विद्यामें बड़ी कुशलता दिखला रहा है। उसने भी अपने पिताके ही समान यह सब मामूली लुहार-बढ़इयोंको काम करते देखकर सीखा है। उनकी सबसे बड़ी लड़की राधाने, जिसकी उम्र अठारह वर्ष है, बिहारमें स्त्रियोंकी स्वाधीनताके सम्बन्ध में एक मुश्किल और नाजुक काम हाल ही में शुरू किया था। सचमुच वे यह अच्छी तरह जानते थे कि राष्ट्रीय शिक्षा कैसी होनी चाहिए। और वे शिक्षकोंको प्रायः इस विषयपर गम्भीर और विचारपूर्ण चर्चामं लगाया करते थे।

पाठक यह न समझें कि उन्हें राजनीतिका कुछ ज्ञान नहीं था। यह ज्ञान होते हुए भी उन्होंने रचनात्मक सेवा, आत्म-त्याग और शान्तिका मार्ग ही चुना था । वे मेरे हाथ थे, मेरे पैर थे और मेरी आँखें थे। दुनियाको क्या पता कि मेरा तथाकथित बड़प्पन, शान्त, श्रद्धालु, योग्य और पवित्र स्त्री तथा पुरुष कार्यकर्त्ताओंके अविरत परिश्रम, बेउजर काम करनेपर कितना निर्भर है ? और इसीलिए कार्यकर्ताओंमें मगनलाल मेरे लिये सबसे बड़े, सबसे अच्छे और सबसे अधिक पवित्र थे।