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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनकी पत्नियाँ पुनर्विवाह नहीं कर सकतीं। और तो भी दूसरी तरहके लोग- और इन्हींकी संख्या कहीं अधिक है-अपनी पत्नियोंको केवल आनन्दके उपभोगका साधन बनाते हैं और उन्हें अपने बौद्धिक जीवन में साझेदार नहीं बनाते। बहुत ही थोड़े लोग ऐसे हैं जिनका अन्तःकरण जाग्रत हुआ है। मगर अब उनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। उनके सामने भी वैसी ही नैतिक समस्या आ खड़ी हुई है जैसी कि मेरे पत्र लेखकके सामने है।

मेरी सम्मतिमें सम्भोगको अगर उचित या नियमानुकूल मानना है तो उसकी इजाजत तभी दी जा सकती है जब कि दोनों पक्ष उसकी इच्छा करें। मैं इस अधिकारको नहीं मानता कि दोनोंमें से एक दूसरेसे जबरन इच्छा पूर्ति कराये । और अगर इस मामले में मेरी स्थिति सही है तो पतिपर पत्नीकी मांगें पूरी करनेकी कोई नैतिक जिम्मेवारी नहीं है। मगर इनकार करनेसे पतिपर और भी बड़ा भारी और ऊँचा उत्तरदायित्व आ पड़ता है। वह अपनी पत्नीको नीची नजरसे नहीं देखेगा, किन्तु नम्रतापूर्वक इसे स्वीकार करेगा कि उसके लिए जो बात जरूरी नहीं है, वही उसकी पत्नीके लिए परमावश्यक वस्तु है। इसलिए वह उसके साथ अत्यन्त नम्रतापूर्ण व्यवहार करेगा और विश्वास रखेगा कि उसकी पवित्रता उसकी पत्नीकी वासनाको अत्यन्त ऊँचे प्रकारकी शक्तिके रूपमें बदल सकेगी। इसलिए उसे अपनी पत्नीका सच्चा मित्र, नायक और वैद्य बनना होगा। पत्नीमें उसे पूरा-पूरा विश्वास करना होगा, उससे कुछ भी छिपाना न होगा और अटूट धैर्यसे उसे पत्नीको इस कामका नैतिक आधार समझाना पड़ेगा और यह बतलाना होगा कि पति पत्नीके बीच सचमुचमें कैसा सम्बन्ध होना चाहिए और विवाहका सच्चा अर्थ क्या है। वह यह काम करते हुए देखेगा कि पहले जो बहुतसी बातें उसके सामने स्पष्ट नहीं थीं, स्पष्ट होने लगी हैं और अगर उसका अपना संयम सच्चा हुआ तो वह अपनी पत्नीको अपने और भी निकट खींच लेगा ।

इस मामलेमें तो मुझे कहना ही पड़ेगा कि केवल अधिक सन्तानोत्पत्तिसे बचने की इच्छा ही पत्नीको सन्तोष देनेसे इनकार करनेका काफी कारण नहीं है। महज बच्चोंका भार उठानेके डरसे पत्नीकी प्रेम-याचनाको अस्वीकार करना तो कायरता-सी लगती है। बेहिसाब सन्तानोत्पत्तिको रोकना दोनों पक्षोंके अलग-अलग या साथ-साथ अपनी कामवासनापर लगाम लगानेका अच्छा कारण है, मगर यह इस बातका समुचित कारण नहीं है कि दम्पत्तिमें से एक अपने संगीके साथ शयन करनेका अधिकार छीन ले ।

और आखिर बच्चोंसे इतनी घबराहट ही किसलिए हो ? ईमानदार, परिश्रमी और बुद्धिमान् पुरुषोंके लिए निश्चय ही एक उचित संख्यामें लड़कोंका पालन-पोषण कर सकने लायक कमाई करनेकी काफी गुंजाइश है। मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरे पत्र-लेखक जैसे आदमीके लिए जो देश-सेवा में अपना सारा समय लगानेकी ईमानदारीसे कोशिश करता है, बड़े और बढ़ते हुए परिवारका पालन करना और साथ ही साथ देशकी भी सेवा करना, जिसकी करोड़ों भूखी सन्तानें हैं, मुश्किल है। मैंने इन