पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८३
यूरोपीय मित्रोंसे

पृष्ठोंमें अकसर यह विचार व्यक्त किया है कि जबतक भारतवर्ष गुलाम है, यहाँ बच्चे पैदा करना ही भूल है। मगर यह तो नवयुवकों और युवतियोंके विवाह ही न करनेका बड़ा अच्छा कारण है; एक साथीका दूसरे साथीको दाम्पत्तिक सहयोग न देनेका समुचित कारण नहीं है। हाँ, सहयोग न करना भी उचित हो सकता है, बल्कि न करना ही धर्म हो जाता है, जबकि शुद्ध धर्मके नामपर ब्रह्मचर्य-पालनकी इच्छा प्रबल हो उठे। जब वह इच्छा सचमुचमें पैदा हो जायेगी, तब उसका बड़ा अच्छा प्रभाव दूसरेपर भी पड़ेगा। अगर मान लें कि समयपर उसका भला प्रभाव नहीं पड़ा; तथापि जीवन-संगीके पागल हो जाने या उसकी मृत्यु तकका जोखिम उठाकर ब्रह्मचर्य-पालन करना कर्त्तव्य हो जाता है। ब्रह्मचर्यके लिए भी वैसे ही साहस- पूर्ण त्यागोंकी जरूरत है जैसे त्यागोंकी सत्य या देशोद्धारके लिए जरूरत होती है। मैंने ऊपर जो कुछ लिखा है, उसे ध्यानमें रखते हुए यह कहनेकी कोई जरूरत नहीं रह जाती है कि कृत्रिम उपायोंसे सन्तति-निग्रह करना अनैतिक है और मेरे तर्ककी तहमें जीवनकी जो भावना छिपी हुई है, उसमें इसका कोई स्थान नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया २६-४-१९२८

३१९. यूरोपीय मित्रोंसे

यह घोषित करते हुए मुझे बहुत खेद होता है कि मेरी जिस यूरोप यात्राकी इतनी चर्चा चल रही थी, कमसे-कम इस साल तो वह किसी हालतमें हो ही नहीं सकती । आस्ट्रिया, हालैंड, स्कॉटलैंड, डेनमार्क, स्वीडन, जर्मनी और रूसके जिन मित्रोंने मेरे पास निमन्त्रण भेजे थे उन्हें मैं इसके सिवाय और क्या कह सकता हूँ कि आपकी निराशा मेरी निराशासे अधिक न होगी ।

जाने क्यों यूरोप और अमेरिका जानेसे मुझे बड़ी घबराहट होती है। इसलिए नहीं कि मैं अपने देशके आदमियोंकी अपेक्षा उन महाद्वीपोंके लोगोंपर कम विश्वास करता हूँ। शायद मैं अपने प्रति ही आश्वस्त नहीं हूँ। मुझे स्वास्थ्य-सुधार या सैर- सपाटेके लिए पश्चिमी देशोंमें जानेकी इच्छा नहीं है। मुझे सार्वजनिक सभाओंमें भाषण करनेका शौक नहीं है। मुझे घुमा-फिराकर दर्शनीय स्थान दिखाये जायें, इससे मैं नफरत करता हूँ। मैं नहीं समझता कि अब फिरसे भाषणों और सार्वजनिक धूम- धामकी भयंकर मेहनत बरदाश्त करने लायक सबल मेरा शरीर कभी हो भी सकेगा या नहीं। अगर परमात्मा मुझे कभी पश्चिममें ले गया तो मैं वहाँके जन-समूहोंसे दिली सम्बन्ध स्थापित करने, पश्चिमके नौजवानोंसे शान्तिके साथ बातें करने और उन शान्तिप्रेमी पुरुषोंसे मिलनेका सौभाग्य प्राप्त करनेके लिए जाऊँगा, जो शान्तिके लिए सत्यके अलावा और सब कुछ दे डालनेको तैयार होंगे।

मुझे लगता है कि मेरे पास अभी ऐसा कोई सन्देश नहीं है, जो मैं खुद जाकर पश्चिमको दूं। मेरा विश्वास है कि मेरा सन्देश सार्वभौम है, मगर अभी मुझे यही