पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३१७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८५
चार महीनेका काम

बतलाई हुई मर्यादाओंके भीतर फिर करूँगा और चाहे मैं अपना सन्देश देनेको तैयार होऊँ या न होऊँ, आऊँगा जरूर। अपने अनेक मित्रोंसे आमने-सामने मिलना ही कुछ कम सौभाग्यकी बात नहीं होगी। अन्तमें मैं यह कहकर इस व्यक्तिगत कथनको समाप्त करता हूँ कि अगर मुझे कभी पश्चिम जानेका सौभाग्य प्राप्त भी हुआ तो, सिवाय इसके कि आबोहवाके कारण जो परिवर्तन करने पड़ें, और स्वेच्छासे स्वीकृत संयमके कारण जो परिवर्तन हो जायें, मैं अपनी पोशाक या रहन-सहनमें कोई परिवर्तन नहीं करूंगा। मुझे आशा है कि मेरा बाहरी स्वरूप मेरे आन्तरिक स्वरूपकी ही छाया है ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-४-१९२८

३२०. चार महीनेका काम

वैश्य-विद्याश्रम, सासवणने, जिसने गत वर्ष खूब जोरोंसे रचनात्मक कार्य शुरू, किया था, विगत चैत्र-मासमें समाप्त होनेवाले चार महीनोंके कामकी अपनी निम्न- लिखित रिपोर्ट [१] भेजी है।

अगर इस बातके सबूतकी अब भी जरूरत हो कि लगनसे काम करनेपर क्या कुछ नहीं हो सकता, तो उपर्युक्त रिपोर्ट चार महीनोंसे लगातार प्रगति कर रहे कामके सबूतके रूपमें देखी जा सकती है। जब किसी स्थानके बारेमें ऐसा कहा जाता है कि वहाँ चरखा असफल रहा, तो समझना चाहिए कि वहाँ चरखा असफल नहीं हुआ, बल्कि चरखा चलानेवाले ही अपने कामपर डटे नहीं रह सके; क्योंकि उनमें श्रद्धा न थी । यदि सच्चा प्रयत्न किया जाये तो जैसे कि सासवण आश्रमके लड़कोंने शिक्षकोंकी बात मानी है, सभी जगहोंके लड़के शिक्षकोंकी बात मानें । इन स्तम्भोंमें समय-समयपर जो आँकड़े छपते रहते हैं, उन्हींके सहारे कोई भी सहज ही यह जोड़ कर देख सकता है कि सारे राष्ट्रको कपड़ा पहनानेके लिए चरखेपर या तकली पर ही कमसे-कम एक घंटा रोज कातनेवाले कितने लड़के चाहिए । काश ! हममें इस देशके दुःख दारिद्रयकी रामबाण दवाके रूपमें चरखेके सादे सौन्दर्यके दृश्यकी कल्पना करनेकी शक्ति होती ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-४-१९२८
  1. यहाँ नहीं दी जा रही है।