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३२१. तार : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

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साबरमती
२६ अप्रैल, १९२८

परम माननीय शास्त्री
मैरित्सबर्ग

मैंने जुलाई १९१४ में दक्षिण आफ्रिका छोड़ा था । संघ सरकार और मेरे बीच जो भी करार हुए होंगे वे मेरे आनेसे पहले के ही हो सकते हैं । जाली प्रवेश करनेवालोंके लिए मेरा व्यक्तिगत रूपसे कोई संरक्षण माँगना असम्भव था; पर मैंने उन लोगोंके लिए, जिनको जाली कागज मिले थे, संरक्षण माँगा और वह मिला । क्योंकि मैंने सरकारके आगे पूरी तरहसे यह सिद्ध कर दिया कि इस जालसाजीमें उनके अधिकारियोंका भी हाथ था और एक ईमानदार व्यक्तिके लिए भी बेईमानी किये बिना प्रवेश पाना बहुत कठिन हो गया था। इसलिए आप देखेंगे कि नेटाल और ट्रान्सवालमें अन्तर है। निस्सन्देह जालसाजी तो सब जगह होती है पर जितनी अधिक मात्रामें और प्रायः खुले तौरपर भ्रष्टाचारी और भ्रष्ट किये जा सकनेवाले अधिकारियों द्वारा ट्रान्सवालमें जालसाजी की जाती है उतनी कहीं नहीं। अपने आनेके बाद होनेवाली घटनाओंके सम्बन्धमें मैं कोई साधिकारिक सूचना रखनेका दावा नहीं करता; और सामान्य तौरपर अब जबकि हबीबुल्ला शिष्टमण्डलने नया अध्याय खोल दिया है और नया नजरिया दिया है और जब कि आपकी उपस्थितिने नये नजरिये पर विशेष जोर डाला है तथा उसे स्थायित्व दिलाया है, तब सब बातोंपर भूतकालमें किये गये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वायदोंके अतिरिक्त योग्यताके आधारपर विचार किया जाना चाहिए। और मेरे खयालसे जो लोग गांधी-स्मट्स समझौतेसे पहले प्रवेश कर चुके हैं, उन्हें बिना किसी शर्तके पूरा संरक्षण दिया जाना चाहिए। आखिरकार ऐसे लोगोंकी संख्या तो कम ही होगी । अपनी राय देनेके बाद मैं यह जानता हूँ कि आप जो कुछ करेंगे वह वर्तमान परिस्थितियोंमें सर्वोत्तम और सम्मानजनक होगा। अतः अपनी शक्ति भर मैं आपको अपना पूरा सहयोग देता रहूँगा, विशेषकर ट्रान्सवालके भारतीयोंके सम्बन्धमें आपके कार्यमें | गोपनीय कहकर सर मुहम्मदको प्रतियाँ भेज रहा हूँ ।

गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० ११९७५) की फोटो-नकलसे ।

  1. पद श्रीनिवास शास्त्रोके २४ अप्रैलके समुद्री तारके उत्तरमें भेजा गया था। तारके पाठके लिए देखिए परिशिष्ट २।