पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३२१

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३२५. पत्र:लॉर्ड इविनको

साबरमती
२६ अप्रैल, १९२८

प्रिय मित्र,

दिल्ली में हुई अपनी मेंटके समय मैंने आपको खादी सम्बन्धी साहित्य[१] भेजनेका वायदा किया था। श्री ग्रेगकी पुस्तक प्रकाशित होने तक मैंने आपको अन्य पुस्तिकाएँ भेजनेमें देरी की है। उन अन्य पुस्तिकाओंमें मद्रास और बिहारके दो बहुत प्रसिद्ध वकीलोंके विचारोंका निचोड़ दिया गया है ।

यह आपका बड़प्पन था आपने कहा, जब कभी मुझे अधिक फुरसत होगी तो मैं आपसे खादीकी सार्थकताके सम्बन्ध में बातचीत करना चाहूँगा।" यदि आपको फुरसत हो और अब भी आपकी वैसी इच्छा हो तो मैं आपकी सेवाके लिए सदैव तत्पर हूँ ।

मैं हूँ,
परम श्रेष्ठका मित्र,
मो० क० गांधी

परम श्रेष्ठ वाइसराय
शिमला

अंग्रेजी (एस० एन० १३५९६) की फोटो-नकलसे ।

३२६. पत्र : जे० बी० पेटिटको

आश्रम
साबरमती
२६ अप्रैल, १९२८

प्रिय श्री पेटिट,

जब मैं विदेशोंमें रह रहे प्रवासियोंकी स्थितिके सम्बन्धमें अपने खर्चमें योगदान देनेके लिए आपको लिखनेकी बात सोच रहा था, मुझे परम आदरणीय शास्त्रीका एक लम्बा गोपनीय समुद्री तार मिला, जिसका मुझे उत्तर [२] देना ही पड़ा और उसपर मैंने रु० ९२-४ आने खर्च किये। मैं नहीं जानता कि समुद्री तारों द्वारा यह बातचीत कब तक चलती रहेगी।


३६-१९

  1. देखिए खण्ड ३५, पृष्ठ ६९ और ७०-७१ तथा परिशिष्ट ५ ।
  2. देखिए " तार : वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको ", २६-४-१९२८ ।