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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनारसीदास मेरे पास नहीं हैं; किन्तु मेरे पास फीजीके तोताराम सनाढ्य हैं । उनके बारेमें यह सोचनेका साहस कर सकता हूँ कि आप उन्हें कमसे-कम उनकी प्रसिद्धिके कारण जानते होंगे। वे सपत्नीक आश्रममें रह रहे हैं। उन्हें नियमित रूपसे रु० ५० दिये जाते हैं तथा फीजी सम्बन्धी कार्योंके लिए उन्हें और अधिक पैसा खर्च करनेकी छूट है। सारे खर्चेका हिसाब रखा जाता है और उसे प्रकाशित भी किया जाता है। उस हिसाबकी एक नकल मैं आपको इस पत्रके साथ भेज रहा हूँ । अपने खाली समयमें तोतारामजी आश्रम में बच्चोंको हिन्दी पढ़ाते हैं। मैं चाहता हूँ कि संघ [१] मेरे इस बोझको सँभाल ले। यदि संघ तोतारामजीको दिये जानेवाले सारे मानदेयका भार अपने ऊपर लेनेको राजी नहीं होता तो वह मेरे साथ उसे आधा-आधा बाँट सकता है। तोतारामजीने अपने कार्यका जो विवरण प्रकाशित करके निजी लोगोंमें प्रचारित किया है, मैं वह आपको भेज रहा हूँ।

अपने निजी मित्रोंकी उदारताके बलपर मैं आश्रम सम्बन्धी सभी गतिविधियोंका खर्चा उठा रहा हूँ, परन्तु मैं सोचता हूँ कि प्रवासियोंके सम्बन्ध में किये जाने वाले सभी कार्योंका खर्च संघको उठाना चाहिए। इसलिए मैं चाहूँगा कि आप मेरे इस पत्रको दो भागोंमें बँटा हुआ समझे, पहले भागका सम्बन्ध सामान्य खर्चेसे है जो अब तक मेरे बहीखातेमें लगभग रु०५,००० का है- यह बताने के लिए कि हिसाब कैसे रखा जाता है, मैं आश्रमके बहीखातेका एक अंश उद्धृत करके आपको भेज सकता हूँ और पत्रके दूसरे भागका सम्बन्ध उस खर्चसे है जो मैं आजकल समुद्री तारोंपर कर रहा हूँ |

संघकी समिति अपने कोषमें से जो कुछ भी देना अपना उचित उत्तरदायित्व समझे, उसके लिए मैं उसका आभारी होऊंगा।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२८५९) की माइक्रोफिल्मसे ।

३२७. पत्र : जुगलकिशोरको

आश्रम साबरमती २७ अप्रैल, १९२८

प्रिय जुगलकिशोर,

इतने दिनों बाद आपका पत्र पाकर प्रसन्नता हुई। प्रेम महाविद्यालयमें आपका काम कैसा-क्या चल रहा होगा, इसके बारेमें, मैं सोचता रहता था ।

कत्तिनोंके रजिस्टरकी मेरी योजना जितना आप सोचते हैं उससे आधी बातोंकी माँग भी नहीं करती; हम बहुत अधिक बारीकियोंमें तो जा भी नहीं सकते, न इस बातका ही आग्रह कर सकते हैं कि प्रत्येक कार्यकर्ता कत्तिनोंके घनिष्ठ सम्पर्कमें

  1. साम्राज्यीय नागरिकता संघ |