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३२८. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

२७ अप्रैल, १९२८

भाई श्री घनश्यामदासजी,

आपके दोनों पत्र मीले हैं। पर उसका उत्तर देनेका आज भी पूरा समय तो है ही नहिं ।

मगनलालके बारेमें मैं क्या लीखुं ? मेरे लीये इस मृत्युकी वरदास झहरके प्याले पीनेसे कठिन प्रतीत हुई है परंतु ईश्वरने मुझपर बड़ी कृपा की है; शांत हुं ।

बहिष्कारके बारेमें शिक्षित वर्ग जब तक तैयार नहीं होगा तब तक कया कीया जाय ? मीलोंकी आशा व्यर्थ है ऐसा अब तो साफ २ मालूम हो गया है।

आपका स्वास्थ्य अच्छा हो रहा है सुनकर मुझे बड़ा हर्ष होता है। इसमें स्वार्थ भी तो है। क्या करूं ?

आपका,
मोहनदास

सी० डब्ल्यू० ६१५६ से
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

३२९. पत्र : फ्रेड्रिक और फ्रान्सिस्का स्टेंडनथको

आश्रम
साबरमती
२७ अप्रैल, १९२८

प्रिय मित्र, मुझे आपके सब पत्र मिल गये हैं। इनमें आपका २८ मार्चका अन्तिम पत्र भी शामिल है। मेरी समझमें मैंने आपके पिछले पत्रका उत्तर नहीं दिया था; क्योंकि आपने उसमें ऐसा कुछ इशारा किया था कि आप मुझे निश्चित किराया तथा आपके पारपत्र पानेमें कोई दिक्कत होगी या नहीं यह सूचित करनेकी दृष्टि से दूसरा पत्र लिखेंगे। आपके हालके पत्रसे पारपत्रके बारेमें तो पूरी जानकारी मिल जाती है; लेकिन उसमें किरायेका कोई जिक्र नहीं है। यदि आप मुझे निश्चित रूपसे बता दें कि किराया कितना होगा तो मैं अपने दोस्तोंसे उतने रुपयोंके लिए कह सकूँगा।

जहाँ तक मेरे आश्वासनका [१] फ्रान्सिस्का और फ्रेटिकको आस्ट्रिया सम्बन्धी ब्रिटिश पारपत्र नियन्त्रण अधिकारीने लिखा था: यदि आप महात्मा गांधी के विशेष निमन्त्रणपर भारत-यात्राको जा रहे है तो आपको केवल इस आशयका उनका पत्र पेश करना होगा कि वे आपका खर्चा उठानेकी जिम्मेदारी लेते हैं। (एस० एन० १४३०१ सम्बन्ध है आप कृपया मेरा यह पत्र पेश कर दें। इसमें इस बातका आश्वासन है कि आप जितने दिन मेरे पास रहेंगे आपके

  1. फ्रान्सिस्का और फ्रेटिकको आस्ट्रिया सम्बन्धी ब्रिटिश पारपत्र नियन्त्रण अधिकारीने लिखा था: यदि आप महात्मा गांधी के विशेष निमन्त्रणपर भारत-यात्राको जा रहे है तो आपको केवल इस आशयका उनका पत्र पेश करना होगा कि वे आपका खर्चा उठानेकी जिम्मेदारी लेते हैं। (एस० एन० १४३०१