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स्वेच्छा स्वीकृत दारिद्रयका अर्थ

रुपये आश्रमसे नहीं लिये जा सकते। इसलिए छनगलाल जोशीकी स्थिति उत्कलके गरीबोंके समान हो गई। भेद केवल इतना भर था कि उत्कलके गरीबको अगर कोई कुछ दें तो वह उसका परिग्रह कर सकेगा । छगनलाल जोशीको कोई कुछ दे तो वे उसका उपयोग भी आश्रमके कामके सिवा नहीं कर पायेंगे । स्वेच्छासे लिए गये दारिद्र्य व्रतकी यह विशेषता और अंकुश दोनों हैं ।

तब उत्कलके गरीबको अगर ऐसा गवाहीका समन मिले तो वह क्या करे ? सिपाही तो उन्हें अर्थ समझा नहीं गया है, अदालत तक जानेका भाड़ा खर्च भी नहीं दे गया है। इस मामले में अदालत प्रान्तिज लाइनके तलोद स्टेशन पर थी। अब कागज न समझ सकनेसे और कोई समझाये भी तो पैसा पास न होनेसे उत्कलका गरीब बैठा ही रहेगा न ?

इससे छगनलाल जोशीने निश्चय किया “मैं भी बैठा रहूँ और जो होना है, होने दूं। तभी मेरा स्वेच्छया स्वीकृत दारिद्रय सार्थक गिना जायेगा। तभी गरीबोंकी रक्षाका मार्ग मिलेगा। "

दो चार दिनोंमें जोशीके नाम अदालतके अपमानका 'वारंट' निकला । जोशी गये। पकड़नेवाले अफसरने कहा, "मुकदमेकी मुकर्रर तारीखको आनेका वचन दो तो हम वारंट काममें नहीं लायेंगे। "

जोशीने कहा,'मुझे भाड़े-भत्तेका पैसा दे दीजिए तो मैं हाजिर रहनेको तैयार हूँ।"

यह करनेका उस अफसरको अधिकार न था। इसलिए वह जोशीको अहमदाबादके पहले वर्गके मजिस्ट्रेटके सामने ले गया। मजिस्ट्रेट साहबको पूरी जाँच पड़ताल करनेके लिए समय ही कहाँसे होता ? जोशीजी उस 'समन 'के जवाबमें हाजिर न होनेकी कैफियत देनेका प्रयत्न कर ही रहे थे कि इतनेमें ही अंग्रेजी सल्तनतका वेतन खानेवाले और उसके वातावरणमें घड़े हुए मजिस्ट्रेट बोल उठे :

“अगर आपको आन्दोलन करना हो तो बाहर जाकर कीजिए। आप अगर हाजिर रहनेकी जमानत दें तो मैं छोड़ दूंगा, नहीं तो हिरासतमें रहना होगा। "

भाड़े-भत्तेके बिना अगर जोशी जामिन देनेवाले होते तो पहले ही क्यों न चले जाते ?

गर्मी सख्त थी क्योंकि यह बात पिछले मंगलवारको ही हुई। जोशीने अब और अधिक पैदल चलनेसे इनकार किया। इसलिए उन्हें सवारीमें ले जाना पड़ा । आखिर पहरेके नीचे इस कैदीको तलोद ले जाया गया । जोशीको देखकर मजिस्ट्रेटको अपनी मूलका कुछ भान हुआ। उसने भाड़ा-भत्ता देकर मुकदमेके दिन हाजिर रहनेका वचन लेकर उन्हें छोड़ दिया।

कहते हैं कि तलोदके जिन लोगोंको यह बात मालूम हुई उनपर इस सादे कामकी जरा-सी हिम्मतका अच्छा असर हुआ और वे खुश हुए।

जो स्वेच्छासे गरीबी अपनाकर सेवक बने हैं, वे अगर ऐसा बर्ताव करें तो गरीबों पर होनेवाले जुल्मोंका अन्त बहुत शीघ्र हो जायेगा ।