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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मगनलालके जीवनका अध्ययन करे और यदि वह उसको अच्छा लगे तो उसका अनुकरण दृढ़तापूर्वक करे। जो बात मगनलालके लिए शक्य थी वह प्रत्येक प्रयत्नवान मनुष्यके लिए शक्य है। मगनलाल सच्चा सिपाही था। इस कारण वह सच्चा सरदार भी बन सका था, क्योंकि जो लोग उसका तेज सहन कर सके थे उनको मैं अब भी अपने चारों ओर रोता देख रहा हूँ ।

इस देशमें और संसारमें भी सच्चे सिपाहियोंका महत्व है। देश-सेवा, विश्वसेवा, आत्मज्ञान और ईश्वर दर्शन ये कोई पृथक-पृथक वस्तुएँ नहीं है, बल्कि एक ही वस्तुके भिन्न-भिन्न रूप हैं। इसका दर्शन मगनलालने अपने जीवन में स्वयं किया था और दूसरोंको भी कराया था। जिस किसीको जिज्ञासा हो वह उसके जीवनका अध्ययन करके इस बातको देख सकता है।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २९-४-१९२८

३३४. पत्र : कुँवरजी खेतसी पारेखको

रविवार [२९ अप्रैल, १९२८]

[१]

चि० कुंवरजी, तुम्हारा पत्र मिला। मुझे किसी दिन भी ऐसा नहीं लगा कि तुम धन प्राप्तिके लिए खादीके काममें पड़े हो । किन्तु मेरा यह प्रश्न तो तुम्हारे प्रश्नसे ही उठा था। क्या तुम खादी कार्य करते रहकर ही सन्तुष्ट रह सकोगे ? तुम जानते ही हो कि उसमें घनका लाभ नहीं है। उसमें सूखी रोटी जरूर मिलेगी। तुम्हारे पत्रसे यह समझा हूँ कि यदि आश्रम में केवल ब्रह्मचारी ही रखनेका नियम बन गया तो तुम आश्रम में नहीं रह सकोगे। तो भी मुझे लगता है कि तुम्हें खादी कार्य में लगाने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (एस० एन० ९७११) की फोटो-नकलते ।

  1. डाककी मुहरसे ।