पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 36.pdf/३३२

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३३६. पत्र : सी० विजयराघवाचारियरको

आश्रम
साबरमती
२९ अप्रैल, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका संवेदनाका पत्र मिला। ईश्वरेच्छा बलीयसी ।

जहाँ तक आपके पत्रके दूसरे भागका सम्बन्ध है, मैं बम्बईमें क्या कर सकता हूँ ? मुझे सहायता कर सकनेकी अपनी योग्यतापर कोई विश्वास नहीं है। समस्याके जिस समाधानकी साधारणतया आशा की जाती है, उससे मेरा समाधान काफी मिन्न है। मुझे इस बातमें जितना दृढ़ विश्वास कभी था, उससे ज्यादा आज है कि जाति- समस्या कानून द्वारा या उसकी सीमासे बाहर रहकर ही हल कर लेनी चाहिए; इसे हल करनेमें यदि गृह युद्ध भी अनिवार्य हो, तो वह हो जाये । किन्तु इस तरहके पागलपनके प्रस्तावको कौन सुनेगा ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत सी० विजयराघवाचारियर
कोडाइकनाल

अंग्रेजी (एस० एन० १३२०७) की फोटो-तकलसे ।

३३७. पत्र : लाजपतरायको

आश्रम
साबरमती
२९ अप्रैल, १९२८

प्रिय लालाजी, आपका आपके ही अनुरूप, विशिष्ट पत्र मिला। मुझे प्रसन्नता है कि दक्षिणमें अस्पृश्यताका क्या रूप है, इसे आपने अपनी आँखों देख लिया । मुझे लगता है कि आप वहाँ कुछ अधिक समय तक रहे होते जिससे कि आपने उन लोगोंको भी प्रत्यक्ष देख लिया होता जिन्हें अमुक सड़कों और रास्तोंपर चलने-फिरनेकी मनाही होती है और जिन्हें देखने योग्य भी नहीं माना जाता तथा उनसे कुछ बातचीत भी की होती तो और अच्छा होता ।

और इस सम्बन्धमें मैं आपको बता दूं कि इन अनुपगम्य और अदर्शनीय लोगों तक भी पहुँचनेमें खादी कितना महत्वपूर्ण भाग ले रही है, क्योंकि यह खादी ही है,