३४०. पत्र : ना० र० मलकानीको
आश्रम
साबरमती
१ मई, १९२८
प्रिय मलकानी,
तुम्हारा पत्र मिला। मैं मिलके कपड़ेके बारेमें 'यंग इंडिया'[१] के अगले अंकमें लिखूंगा। अभी मैं जयरामदासको लिख रहा हूँ ।[२]
अब मुझे मगनलाल हमारे लिये जो निधि छोड़ गया है उसका पात्र बननेका प्रयास करना है ।
तुम कृपया मुझे समय रहते यह सूचित करना कि क्या तुम चाहते हो कि मैं मथुरादासके चले जानेके बाद जयसुखलालको भेज दूं। मैं समझता हूँ कि बाढ़-सहायता कार्यको हाथमें लेनेके बाद तुम अब दूसरी किसी भी चीजमें, वह कितनी भी आकर्षक क्यों न हो, सक्रिय भाग लेकर इस बाढ़-सहायता कार्यको संकटमें नहीं डालोगे । 'भगवद्गीता 'का यह श्लोक याद रखो :
अपना गुण-विहीन धर्म भी दूसरेके अच्छी तरह आचारण किये गये धर्मसे श्रेष्ठ-तर है। स्वधर्म-पालनमें मृत्यु भी अच्छी है; पर-धर्म भय-कारक है ।[३]
हृदयसे तुम्हारा,
अंग्रेजी ( जी० एन० ८८६ तथा एस० एन० १३२१२) की फोटो-नकलसे ।
३४१. पत्र : एस० रामनाथनको
आश्रम
साबरमती
१ मई, १९२८
प्रिय रामनाथन,
... [४] के बारेमें आपका पत्र मिला। मुझे लगता है कि आपका कानून गलत है। यदि आपके पास लिखितमें ... [५] का कुछ नहीं है तो मुझे यकीन है कि कार्यकर्ताओंकी लापरवाही या धोखाधड़ीसे जो नुकसान हुआ है, उसे हम नहीं भर