सकते, चाहे कार्यकर्त्ताओंने नकद जमानत ही क्यों न जमा करा रखी हो । क्या आपको यह सिद्धान्त खतरनाक नहीं लगता ? यदि कानून ऐसा हो तो कर्मचारियोंको उन मालिकोंकी मर्जीका मोहताज रहना पड़ेगा जो खुद मुन्सिफ भी होंगे और अपने दिये फैसलेको कार्यान्वित करनेवाले भी । जो मालिकको लापरवाही या धोखाधड़ी लगे, हो सकता है कि वह ईमानदारीसे कर्मचारीको वैसा न लगे और कानूनमें भी बात वैसी न हो। इसलिए यदि कर्मचारियों द्वारा दी गई जमानतोंको स्पष्ट लापरवाही और धोखाधड़ीके लिए जब्त करनेकी बात हो तो; उसके लिए एक सुव्यवस्थित संस्थाके पास सुस्पष्ट लिखित इकरार होने चाहिए। इसलिए आप ...[१] के बारेमें चाहे जो करें, मेरा सुझाव है कि आप उन सब कर्मचारियोंसे, जिनसे आपने जमानतें ली हैं, लिखित इकरार ले लें।
जहाँतक ... [२]का सम्बन्ध है, मेरा सुझाव है कि आप उनकी बेईमानीको साबित करनेवाले जो भी तथ्य आपके पास हों उन्हें उनके सामने रखें और उन्हें बताये कि संघकी प्रथा और आप दोनोंके बीच हुए मौखिक इकरारके मुताबिक आप जमानतको हानिकी गारंटीके रूपमें रोक रहे हैं और कहें कि यदि वे चाहें तो मामलेको कचहरीमें ले जायें या फिर मध्यस्थकी बात मानें । मध्यस्थोंमें एक उनके द्वारा और एक हमारे द्वारा नियुक्त होगा।
मैंने वादा किया था कि आपका पत्र मिल जानेके बाद मैं...[३] को पत्र लिखूंगा। उन्हें पत्र [४]लिखनेसे पहले मैं आपके उत्तरकी प्रतीक्षा करूंगा।
हृदयसे आपका,
बापू
सचिव
अ० मा० च० संघ, तमिलनाड
अंग्रेजी (एस० एन० १३५९३) की माइक्रोफिल्मसे ।